deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

हैट्रिक बनाने के प्रयास में केसीआर के सामने सत्ता विरोधी लहर की चुनौती

by
May 12, 2023
in ताज़ा समाचार
0
हैट्रिक बनाने के प्रयास में केसीआर के सामने सत्ता विरोधी लहर की चुनौती
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

READ ALSO

प्रधानमंत्री ने सतना एयरपोर्ट का किया वर्चुअल लोकार्पण

धूमधाम से मनाया गया महाराणा प्रताप का 485वां जन्मोत्सव

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

ADVERTISEMENT

हैदराबाद, 12 मई (आईएएनएस)। तेलंगाना में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को चुनाव के दौरान सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा।

के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को भारत के सबसे युवा राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए एक संभावित मजबूत सत्ता विरोधी लहर को दूर करना होगा।

केसीआर को भी इतिहास रचना होगा क्योंकि दक्षिण भारत के किसी भी मुख्यमंत्री ने कभी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए खुद को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में बदलने के बाद यह पहला चुनाव होगा।

तेलंगाना में बिना तेलंगाना लहर के यह पहला चुनाव होने की भी संभावना है, जिससे बीआरएस के लिए कार्य को और अधिक कठिन बना सकता है।

साल 2014 और 2018 के चुनावों में तेलंगाना की लहर हावी रही क्योंकि टीआरएस ने पहले चुनाव में तेलंगाना के पुनर्निर्माण के नाम पर जनादेश मांगा और साल 2018 में राज्य को बंगारू या स्वर्ण तेलंगाना में बदलने के अपने प्रयासों को जारी रखने के लिए एक नया जनादेश मांगा था।

जैसा कि केसीआर को लगता है कि उन्होंने एक प्रगतिशील तेलंगाना के अपने कार्य को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप टीआरएस को बीआरएस के रूप में पुनर्नामित किया, साथ ही देश के बाकी हिस्सों में तेलंगाना मॉडल को दोहराने का आान किया।

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर-दिसंबर में होने की संभावना है। कई प्लेयर्स के चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही चुनावी जंग काफी दिलचस्प होने की संभावना है, जिसके नतीजे का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य के गठन के बाद से पार्टी सत्ता में है, इसलिए सत्ता विरोधी लहर चल रही होगी।

केसीआर ने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई का नेतृत्व किया और लक्ष्य हासिल भी किया। केसीआर को देश के सबसे चतुर राजनेताओं में से एक माना जाता है। वह अपने विरोधियों को अपने राजनीतिक हथकंडों से हैरान करने के लिए जाने जाते हैं।

भाजपा के राज्य में एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरने के साथ, यह देखना दिलचस्प होगा कि केसीआर, भाजपा का मुकाबला करने के लिए कैसे रणनीति तैयार करेंगे। कुछ राजनीतिक विश्लेषक केसीआर के टीआरएस को बीआरएस में बदलने के कदम को रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।

बीआरएस प्रमुख पहले से ही विभिन्न राज्यों के नेताओं को रायथु बंधु और तेलंगाना की अन्य योजनाओं के बारे में बात करने के लिए हैदराबाद लाकर तेलंगाना मॉडल को बेचने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि केसीआर भाजपा के शासन के मोदी मॉडल का मुकाबला कर रहे हैं। वह इसे एक गोलमाल मॉडल कहते हैं और तेलंगाना मॉडल को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

हर बैठक में केसीआर इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तेलंगाना उच्चतम प्रति व्यक्ति आय के साथ एक मॉडल राज्य बन गया है, जिसमें किसानों, दलितों और समाज के अन्य वर्गों के लिए विभिन्न योजनाएं हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि केसीआर को इस तरह की स्टोरी की जरूरत है क्योंकि विपक्ष के साथ मजबूत सत्ता विरोधी लहर होगी, जो उनसे उनके द्वारा किए गए वादों को बारे में सवाल करेगा जिन्हें पूरा करने में वह विफल रहे हैं।

इस बार, बीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के नेतृत्व वाली वाईएसआर तेलंगाना पार्टी और अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की अगुवाई वाली जन सेना पार्टी जैसे नए विरोधियों का सामना करेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आने वाले आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी नए जोश के साथ मैदान में उतर सकती है।

तेलंगाना की लहर पिछले चुनावों की तरह नहीं चल रही है। एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी के भी तेलंगाना में खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए अपनी ताकत दिखाने की उम्मीद है।

पूर्व में अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली बीआरएस का वाम दलों के साथ गठबंधन होने की संभावना है। यह संकेत तब मिले थे जब पिछले साल के अंत में मुनुगोडे विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वामपंथी दलों ने बीआरएस को समर्थन दिया था।

एक विश्लेषक ने कहा कि बीआरएस अपनी दलित बंधु योजना और कई अन्य उपायों के साथ दलितों से पूर्ण समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है, जो मतदाताओं का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 10 प्रतिशत हैं जो एक बार फिर बीआरएस की वापसी कर सकते हैं। यदि बीआरएस को शेष 80 प्रतिशत में से 10-15 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल जाता है, तो वह आराम से सत्ता बरकरार रखेगी।

हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बीआरएस ने राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी समुदाय का समर्थन खो दिया है, वोट भाजपा, कांग्रेस और अन्य के बीच विभाजित हो सकते हैं। पिछड़े वर्ग के साथ भी ऐसा ही होने की संभावना है, जो मतदाताओं का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा के उभरने से बेपरवाह, केसीआर को भरोसा है कि बीआरएस 119 सदस्यीय विधानसभा में 100 से अधिक सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखेगी।

आगे कहा कि तेलंगाना में दोबारा सत्ता में आना कोई बड़ा काम नहीं है। उन्होंने मंत्रियों, सांसदों और राज्य के विधायकों सहित प्रतिभागियों से कहा है कि प्राथमिकता पहले से अधिक सीटें जीतना है।

बीआरएस ने 2014 के चुनाव में 63 सीटें हासिल की थीं और साल 2018 के चुनाव में 88 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के एक दर्जन सहित कई विधायकों के दलबदल के साथ, बीआरएस ने अपनी सीटों की संख्या 100 से अधिक कर ली थी।

बीआरएस नेताओं को उम्मीद है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य खिलाड़ियों के बीच सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से बीआरएस को सत्ता बनाए रखने में मुश्किल नहीं होगी।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

Related Posts

Prime Minister virtually inaugurated Satna Airport
Today's Special News

प्रधानमंत्री ने सतना एयरपोर्ट का किया वर्चुअल लोकार्पण

May 31, 2025
मनाया गया महाराणा प्रताप का 485वां जन्मोत्सव
जबलपुर

धूमधाम से मनाया गया महाराणा प्रताप का 485वां जन्मोत्सव

May 31, 2025
भाजपा रीवा ने निकाली भव्य तिरंगा यात्रा
ताज़ा समाचार

भाजपा रीवा ने निकाली भव्य तिरंगा यात्रा

May 31, 2025
Anuradha gave financial support to her family
ताज़ा समाचार

हिम्मत और मेहनत से अनुराधा ने अपने परिवार को दिया आर्थिक सहारा

May 31, 2025
ताज़ा समाचार

पीएम मोदी ने दुश्मनों को सिंदूर की ताकत का अहसास कराया : जगद्गुरु परमहंस आचार्य

May 31, 2025
ताज़ा समाचार

करुण नायर ने इंग्लैंड लायंस के खिलाफ दोहरा शतक लगाकर टेस्ट टीम में चयन के लिए अपना दावा मजबूत किया

May 31, 2025
Next Post
अडाणी-हिडेनबर्ग विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने जांच पूरी करने के लिए सेबी को तीन महीने और देने का संकेत दिया

अडाणी-हिडेनबर्ग विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने जांच पूरी करने के लिए सेबी को तीन महीने और देने का संकेत दिया

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

083066
Total views : 5883935
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In