deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

अखिलेश के सामने गठबंधन के साथियों को सहेजने की चुनौती

by
July 18, 2023
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
0
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

READ ALSO

राहुल गांधी के दौरे से नहीं पड़ेगा फर्क, बिहार की जनता एनडीए के साथ : संगीता कुमारी

मिर्जापुर के राजकुमार मिश्रा ने रचा इतिहास, ब्रिटेन के वेलिंगब्रो टाउन के बने मेयर

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

ADVERTISEMENT

लखनऊ, 18 जुलाई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए।ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

Related Posts

ताज़ा समाचार

राहुल गांधी के दौरे से नहीं पड़ेगा फर्क, बिहार की जनता एनडीए के साथ : संगीता कुमारी

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

मिर्जापुर के राजकुमार मिश्रा ने रचा इतिहास, ब्रिटेन के वेलिंगब्रो टाउन के बने मेयर

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

‘सेना और महिलाओं का अपमान बर्दाश्त नहीं’, इरफान अंसारी का भाजपा पर हमला

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

फूले फिल्म समाज का आईना है और संघर्ष की गाथा: वर्षा गायकवाड

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

गौतमबुद्ध नगर डीएम ने बिल्डर्स को दिए कड़े निर्देश, 31 मई तक कराएं बकाया फ्लैटों की रजिस्ट्री

May 16, 2025
ताज़ा समाचार

राहुल गांधी ‘नाटक’ करने में बहुत तेज हैं: रविशंकर प्रसाद

May 16, 2025
Next Post

बंगाल स्कूल भर्ती घोटाला: सुजय भद्रा के अस्पताल में भर्ती होने से आवाज के नमूने की जांच में देरी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

February 12, 2023
बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

February 12, 2023
चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

February 12, 2023

बंगाल के जलपाईगुड़ी में बाढ़ जैसे हालात, शहर में घुसने लगा नदी का पानी

August 26, 2023
राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

May 5, 2024

EDITOR'S PICK

रक्षाबंधन से एक दिन पहले केदारनाथ धाम में धूमधाम से मनेगा भतूज पर्व

August 29, 2023
भारत जीतते-जीतते एक विकेट से हार गया पहला वनडे

भारत जीतते-जीतते एक विकेट से हार गया पहला वनडे

December 4, 2022
अमेरिकी व्यक्ति ने 5 मिलियन डॉलर की लॉटरी जीती, पत्नी के लिए तरबूज और फूल खरीदे

अमेरिकी व्यक्ति ने 5 मिलियन डॉलर की लॉटरी जीती, पत्नी के लिए तरबूज और फूल खरीदे

September 14, 2023

बंगाल सरकार ने कोलकाता में भाजपा की रैली के लिए हाईकोर्ट की अनुमति को दी चुनौती

November 22, 2023
ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

081384
Total views : 5874633
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Notifications