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अगर कोरोना इंफेक्शन के बाद होती है, खांसी और गले में खराश? तो आपको हो सकता है हार्ट अटैक

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September 11, 2024
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अगर कोरोना इंफेक्शन के बाद होती है, खांसी और गले में खराश? तो आपको हो सकता है हार्ट अटैक
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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। कोरोना के दौरान कोविड-19 की चपेट में आए लोगों के लिए विशेषज्ञों ने बुधवार को एक चेतावनी जारी की है। कोविड से ठीक हुए लोगों में जिनको पुरानी खांसी, आवाज बैठना, बार-बार गला साफ करने में परेशानी होने जैसे लक्षण दिख रहे हैं, उन लोगों को दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा हो सकता है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

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शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

–आईएएनएस

पीएसएम/एएस

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। कोरोना के दौरान कोविड-19 की चपेट में आए लोगों के लिए विशेषज्ञों ने बुधवार को एक चेतावनी जारी की है। कोविड से ठीक हुए लोगों में जिनको पुरानी खांसी, आवाज बैठना, बार-बार गला साफ करने में परेशानी होने जैसे लक्षण दिख रहे हैं, उन लोगों को दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा हो सकता है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। कोरोना के दौरान कोविड-19 की चपेट में आए लोगों के लिए विशेषज्ञों ने बुधवार को एक चेतावनी जारी की है। कोविड से ठीक हुए लोगों में जिनको पुरानी खांसी, आवाज बैठना, बार-बार गला साफ करने में परेशानी होने जैसे लक्षण दिख रहे हैं, उन लोगों को दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा हो सकता है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। कोरोना के दौरान कोविड-19 की चपेट में आए लोगों के लिए विशेषज्ञों ने बुधवार को एक चेतावनी जारी की है। कोविड से ठीक हुए लोगों में जिनको पुरानी खांसी, आवाज बैठना, बार-बार गला साफ करने में परेशानी होने जैसे लक्षण दिख रहे हैं, उन लोगों को दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा हो सकता है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

–आईएएनएस

पीएसएम/एएस

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। कोरोना के दौरान कोविड-19 की चपेट में आए लोगों के लिए विशेषज्ञों ने बुधवार को एक चेतावनी जारी की है। कोविड से ठीक हुए लोगों में जिनको पुरानी खांसी, आवाज बैठना, बार-बार गला साफ करने में परेशानी होने जैसे लक्षण दिख रहे हैं, उन लोगों को दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा हो सकता है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर किए अपने शोध में बताया कि ऐसे लक्षणों वाले रोगियों में बैरोरिफ्लेक्स सेंसिटिविटी (ब्लड प्रैशर में परिवर्तन से व्यक्ति की हृदय गति में आने वाले परिवर्तनों का पता लगाने वाला पैमाना) में कमी देखी गई है।

शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि शोध में सामने आए निष्कर्षों की व्याख्या से पता चलता है कि वेगस नर्व (जो ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करती है) ब्लड प्रैशर रेगुलेशन जैसे कम जरूरी कार्यों की तुलना में एयरवेज की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में लैरींगोलॉजी और क्लिनिकल इंफॉर्मेटिक्स के प्रोफेसर रेजा नौरेई ने इस मामले पर कहा, “हमारा तात्कालिक जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि हम जब भी कुछ निगलें तब गला वायु और भोजन मार्ग को अलग करने में सक्षम हो।”

उन्होंने आगे कहा, “गला नाजुक रिफ्लेक्स का उपयोग करके ऐसा करता है, लेकिन जब कोविड जैसे वायरल संक्रमण के कारण ये रिफ्लेक्स कमजोर हो जाते हैं तो यह संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे गले में गांठ महसूस होना, गला साफ करना और खांसी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।”

जेएएमए ओटोलरिंगोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में इस विषय पर गहनता से बताया गया है। इसमें बताया गया है, “संक्रमित गले वाले रोगियों के हृदय में विशेष रूप से बैरोरिफ़्लेक्स बहुत अच्छे से काम नहीं कर पाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बीमारी हमारे लंबे समय तक जीने को प्रभावित कर सकती है, आने वाले सालों में कम बैरोरिफ़्लेक्स फंक्शन वाले रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ने की संभावना सबसे अधिक होगी।”

साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए भर्ती 23 रोगियों को शामिल किया था। इन रोगियों में घुटन, पुरानी खांसी और कुछ निगलने में परेशानी जैसे लक्षण थे। इन रोगियों की हृदय गति, रक्तचाप और बैरोरिफ़्लेक्स सेंस्टिविटी की तुलना गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में भर्ती पाचन रोग से पीड़ित 30 रोगियों से की गई थी।

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