नई दिल्ली, 3 जुलाई (आईएएनएस)। दिल्ली सरकार सोमवार को दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना के निर्माण के लिए अपने हिस्से की रकम देने के लिए सहमत हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के विज्ञापनों पर किए गए खर्च पर आपत्ति जताई थी।
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने टिप्पणी की है कि यदि पिछले 3 वर्षों में विज्ञापन पर 1,100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए योगदान दिया जा सकता है।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार को रैपिड रेल परियोजना के लिए लगभग 415 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, साथ ही कहा कि यह भुगतान 2 महीने के भीतर जमा किया जाए।
सोमवार को सुनवाई शुरू होने पर अदालत ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिघवी से कहा,”या तो आप भुगतान करें नहीं तो हम आपका विज्ञापन बजट जब्त कर लेंगे।”
सिंघवी ने कहा कि बजटीय प्रावधान प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार किए जाएंगे। इसके अलावा, उन्होंने आश्वासन दिया कि शेष बजट भी चरणबद्ध तरीके से आवंटित किया जाएगा।
अपने हलफनामे में, दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने पिछले तीन वर्षों में विज्ञापनों पर लगभग 1,073 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
पिछली सुनवाई में दिल्ली सरकार के वकील ने कहा था कि फंड की कमी है, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने सवाल उठाया था कि “यदि आपके पास विज्ञापनों के लिए पैसा है, तो आपके पास उस परियोजना के लिए पैसा क्यों नहीं है जो सुचारू परिवहन सुनिश्चित करेगी?”
अदालत ने संकेत दिया था कि अगर जरूरत पड़ी तो वह विज्ञापन के लिए आवंटित धनराशि को रैपिड रेल परियोजना को पूरा करने में लगाने का भी आदेश दे सकती है।
अदालत की ये टिप्पणियां तब आई जब दिल्ली सरकार ने सूचित किया कि राष्ट्रीय राजधानी को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और मेरठ शहरों से जोड़ने के लिए बनाए जा रहे सेमी-हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर में अपने हिस्से के योगदान के लिए उसके पास कोई धन उपलब्ध नहीं है।
–आईएएनएस
एमकेएस/एसकेपी
नई दिल्ली, 3 जुलाई (आईएएनएस)। दिल्ली सरकार सोमवार को दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना के निर्माण के लिए अपने हिस्से की रकम देने के लिए सहमत हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के विज्ञापनों पर किए गए खर्च पर आपत्ति जताई थी।
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने टिप्पणी की है कि यदि पिछले 3 वर्षों में विज्ञापन पर 1,100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए योगदान दिया जा सकता है।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार को रैपिड रेल परियोजना के लिए लगभग 415 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, साथ ही कहा कि यह भुगतान 2 महीने के भीतर जमा किया जाए।
सोमवार को सुनवाई शुरू होने पर अदालत ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिघवी से कहा,”या तो आप भुगतान करें नहीं तो हम आपका विज्ञापन बजट जब्त कर लेंगे।”
सिंघवी ने कहा कि बजटीय प्रावधान प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार किए जाएंगे। इसके अलावा, उन्होंने आश्वासन दिया कि शेष बजट भी चरणबद्ध तरीके से आवंटित किया जाएगा।
अपने हलफनामे में, दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने पिछले तीन वर्षों में विज्ञापनों पर लगभग 1,073 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
पिछली सुनवाई में दिल्ली सरकार के वकील ने कहा था कि फंड की कमी है, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने सवाल उठाया था कि “यदि आपके पास विज्ञापनों के लिए पैसा है, तो आपके पास उस परियोजना के लिए पैसा क्यों नहीं है जो सुचारू परिवहन सुनिश्चित करेगी?”
अदालत ने संकेत दिया था कि अगर जरूरत पड़ी तो वह विज्ञापन के लिए आवंटित धनराशि को रैपिड रेल परियोजना को पूरा करने में लगाने का भी आदेश दे सकती है।
अदालत की ये टिप्पणियां तब आई जब दिल्ली सरकार ने सूचित किया कि राष्ट्रीय राजधानी को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और मेरठ शहरों से जोड़ने के लिए बनाए जा रहे सेमी-हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर में अपने हिस्से के योगदान के लिए उसके पास कोई धन उपलब्ध नहीं है।
–आईएएनएस
एमकेएस/एसकेपी