रांची, 1 अगस्त (आईएएनएस)। आप हैरान हो सकते हैं, लेकिन यह सच है कि झारखंड के सात सरकारी विश्वविद्यालयों में से तीन प्रोफेसर विहीन हैं।
इन तीनों विश्वविद्यालयों के पीजी डिपार्टमेंट्स असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफसरों के भरोसे चल रहे हैं। तीन अन्य विश्वविद्यालय ऐसे हैं, जहां मात्र एक-एक प्रोफेसर हैं। एकमात्र रांची विश्वविद्यालय ऐसा है, जहां पांच प्रोफेसर हैं।
झारखंड देश का इकलौता राज्य है, जहां विश्वविद्यालय शिक्षकों के प्रमोशन के लिए 31 दिसंबर 2008 के बाद से नियमावली ही नहीं है। इस वजह से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। रांची स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू), धनबाद स्थित बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय (बीबीएमकेयू) और पलामू स्थित नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय (एनपीयू) में 21-22 स्नातकोत्तर (पीजी) विभाग हैं। लेकिन, किसी भी विषय में प्रोफेसर नहीं हैं।
इन तीन विश्वविद्यालयों में विभागों के प्रमुख की जिम्मेदारी या तो एसोसिएट प्रोफेसर या सहायक प्रोफेसर निभा रहे हैं। रांची स्थित मशहूर शिक्षण संस्थान रांची कॉलेज को वर्ष 2017 में यूनिवर्सिटी बनाया गया। इसे नया नाम मिला डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय। छह साल बाद भी यहां आज तक नए स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई। पुराने शिक्षक रिटायर हो गए और यहां प्रोफेसर स्तर के एक भी शिक्षक नहीं हैं।
2017 में ही हजारीबाग स्थित विनोबा भावे विश्वविद्यालय का बंटवारा करने के बाद धनबाद में बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया। उस समय यहां तीन प्रोफेसर डॉ. आरसी प्रसाद (राजनीति विज्ञान), डॉ मंटू सिंह (वाणिज्य) और डॉ. अनवर मल्लिक (वनस्पति विज्ञान) थे। ये तीनों रिटायर हो गए।
2017 में बीबीएमकेयू में 1978 बैच के सीनियर एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एसकेएल दास (अर्थशास्त्र) और 1979 बैच के डॉ. बी कुमार (रसायन विज्ञान) थे, लेकिन योग्यता रखने के बावजूद उन्हें प्रोफेसर पद पर प्रमोशन नहीं दिया गया।
दिलचस्प बात यह है कि उनके बैच के जिन्होंने बिहार कैडर चुना, वे प्रोफेसर बन गए और सेवानिवृत्त हो गए। एनपीयू पलामू भी इसी तरह के संकट से जूझ रहा है। कुछ साल पहले सरकार ने पलामू विश्वविद्यालय में जेपीएससी के माध्यम से पांच प्रोफेसरों की नियुक्ति की थी, लेकिन जिन शिक्षकों का चयन एनपीयू के लिए हो गया था, वे नहीं गये और अपने गृह विश्वविद्यालय वीबीयू और बीबीएमकेयू में ही एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में रहना पसंद किया।
फिलहाल, रांची विश्वविद्यालय (आरयू) में राज्य में सबसे अधिक पांच विश्वविद्यालय प्रोफेसर हैं, जिनमें डॉ. कुनुल कंदील (वनस्पति विज्ञान), डॉ. सुरेश साहू (वाणिज्य), डॉ. यूसी झा (अंग्रेजी), हीरानंदन (हिंदी विभाग) और एक संस्कृत विभाग में हैं। तीन अन्य विश्वविद्यालयों कोल्हान विश्वविद्यालय (केयू) चाईबासा, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (एसकेएमयू) दुमका और विनोबा भावे विश्वविद्यालय (वीबीयू) हजारीबाग में केवल एक-एक प्रोफेसर हैं।
डॉ. मुंदिता चंद्रा (हिंदी विभाग) केयू चाईबासा में एकमात्र विश्वविद्यालय प्रोफेसर हैं। डॉ. आर केएस चौधरी (दर्शनशास्त्र) भी एसकेएमयू दुमका में अकेले प्रोफेसर हैं। वे वीबीयू हज़ारीबाग़ में थे और दो साल पहले उनका तबादला दुमका हो गया है।
वीबीयू हज़ारीबाग़ में भी मात्र एक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार सिंह (हिंदी विभाग) हैं। विडंबना यह है कि सभी सात विश्वविद्यालयों में इस पद के लिए पर्याप्त योग्य शिक्षक हैं लेकिन 23 वर्षों में उन्हें पदोन्नति नहीं दी गई है।
राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के अग्रणी संगठन फेडरेशन ऑफ द यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ऑफ झारखंड के सचिव डॉ. राज कुमार का कहना है कि बार-बार की गुहार के बावजूद यूनिवर्सिटी में शिक्षकों को प्रोन्नति नहीं मिल पा रही है।
इधर उच्च शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि कॉलेज शिक्षकों की प्रोन्नति के लिए नियमावली तैयार कर ली गई है और कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे जल्द ही नोटिफाई कर दिए जाने की उम्मीद है।
–आईएएनएस
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