नई दिल्ली, 20 जुलाई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर केंद्र के अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया।
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने अध्यादेश के साथ-साथ दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त 400 से अधिक कसंल्टेंट को बर्खास्त करने के एलजी के फैसले पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई।
केंद्र का विवादित अध्यादेश संसद के चालू मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।
दिल्ली की आप सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने संविधान पीठ को भेजे जाने का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा करने से व्यवस्था पंगु हो जाएगी।
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर संविधान पीठ की निर्धारित सुनवाई शुरू होने से पहले दिल्ली सरकार की याचिका को सूचीबद्ध करने के उनके अनुरोध को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की याचिका में उठाए गए सवालों को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेजने का संकेत सोमवार को ही दे दिया था। हालांकि, सिंघवी द्वारा स्थगन की मांग के बाद अदालत ने सुनवाई गुरुवार के लिए स्थगित कर दी थी।
दिल्ली एलजी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि संविधान पीठ को मामला भेजना इसलिए जरूरी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले अनुच्छेद 239एए(7)(अ) के तहत कानून बनाने के लिए संसद की क्षमता से संबंधित नहीं थे।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार की याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। इसने यह भी निर्देश दिया था कि मामले में एलजी को भी एक पक्ष के रूप में रखा जाय।
केंद्र ने 19 मई को ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 लाया था। यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा दिल्ली में सेवाओं पर निर्वाचित सरकार को नियंत्रण प्रदान करने के बाद लाया गया था।
–आईएएनएस
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