नई दिल्ली, 27 जुलाई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई से कुछ दिन पहले कश्मीरी पंडितों ने केंद्र सरकार के 2019 के कदम का समर्थन करते हुए हस्तक्षेप याचिका दायर की है।
इनमें से एक याचिका यूथ 4 पनुन ने अपने सचिव विट्ठल चौधरी के माध्यम से दायर की है, जो “कश्मीर की घाटी से कश्मीरी पंडितों के बड़े पैमाने पर पलायन का शिकार है।”
यूथ 4 पनुन, कश्मीरी हिंदू युवाओं को एक साथ लाने और उन्हें “अपनी मातृभूमि के लिए” एक साथ काम करने पर फोकस करता है।
याचिका में कहा गया है कि “अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए कश्मीर घाटी के भीतर भारतीय पहचान की भावना को खत्म करने का एक प्रमुख कारण बन गए… अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर के शेष भारत के साथ मनोवैज्ञानिक एकीकरण की कमी का सबसे बड़ा कारण थे और अलगाववादी विचारों के लिए प्रजनन स्थल बन गये जिसके कारण निर्दोष कश्मीरी पंडितों का जातीय सफाया हुआ”।
वकील सिद्धार्थ प्रवीण आचार्य के माध्यम से दायर हस्तक्षेप याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के प्रावधान भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं।
इसमें तर्क दिया गया है, “तत्कालीन राज्य कानूनों के अनुसार, यदि तत्कालीन राज्य की एक नागरिक-महिला ने भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी की, तो ऐसी नागरिक-महिला की जम्मू-कश्मीरी की नागरिकता समाप्त हो जाएगी। इसके विपरीत यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती है, तो ऐसे पाकिस्तानी व्यक्ति को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाएगी। इसलिए इसने भारत के संविधान में उल्लिखित कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना विदेशियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की।”
एक अन्य हस्तक्षेप याचिका कश्मीरी पंडित विरिंदर कौल द्वारा दायर किया गया है, जिन्हें “1990 के अशांत समय के दौरान जम्मू-कश्मीर से बाहर कर दिया गया था”।
आवेदन में कहा गया, “आवेदक संवैधानिक आदेश 272 और संवैधानिक आदेश 273 का स्वागत करता है क्योंकि दोनों आदेश संवधिान संगत थे और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए ने कश्मीरी पंडित समुदाय के हितों की स्पष्ट रूप से उपेक्षा की है।”
इसमें दावा किया गया कि अनुच्छेद 370 और स्वायत्तता के मुद्दे को इस तरह से हेरफेर करने के लिए डिज़ाइन किया गया था कि भारतीय करदाताओं के पैसे से एक आभासी “शेखडोम या सल्तनत या मिनी पाकिस्तान” का पोषण किया गया था। आवेदन में कहा गया है, “अनुच्छेद 370 एक मृत पत्र था जिसे समाप्त होना ही था क्योंकि यह एक अस्थायी अनुच्छेद था और डिजाइन के अनुसार यह अल्पसंख्यक विरोधी और राज्य की बहुसंख्यक आबादी का समर्थक था और इसके कारण 1947 के बाद से कश्मीरी पंडित समुदाय का बड़ा पलायन हुआ।”
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के 2019 के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2 अगस्त से सुनवाई शुरू करने वाली है।
संविधान पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई और सूर्य कांत भी शामिल हैं। सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर 2 अगस्त से लगातार मामले की सुनवाई होगी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति खन्ना नवीनतम पांच-न्यायाधीशों की पीठ के नए सदस्य हैं क्योंकि पिछली पीठ का हिस्सा रहे उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना और न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
–आईएएनएस
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