नोएडा, 31 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश सरकार ने अमिताभ कांत समिति की रिपोर्ट पर जारी शासनादेश को शीघ्र अमल में लाने का फैसला लिया है। इसके बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की ओर से बिल्डर खरीददार मामलों में जारी किए गए शासनादेश को अंगीकार करने के बाद जिले के 1.12 लाख फ्लैट खरीदारों के आशियाना मिलने का रास्ता साफ होता दिखाई दे रहा है।
बीते 26 दिसंबर को हुई नोएडा प्राधिकरण की 213वीं और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की 133वीं बोर्ड बैठक में चेयरमैन मनोज कुमार सिंह और दोनों प्राधिकरण के बोर्ड के सदस्यों ने इसे अंगीकार करने का फैसला लिया। इसके बाद नोएडा में 56 परियोजनाओं के करीब 32 हजार और ग्रेटर नोएडा के 117 परियोजनाओं में करीब 75 हजार फ्लैट खरीदारों को आशियाना दिलाया जा सकेगा। यह आंकड़ा तैयार और आधे अधूरे फ्लैटों के हैं।
इसके अलावा बाकी बचे हुए 1.33 लाख फ्लैटों में से 1.10 लाख कोर्ट में हैं। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले 3 सालों में अधूरे पड़े प्रोजेक्ट पूरे होंगे और बन चुके प्रोजेक्ट को 3 माह में ओसी-सीसी मिलेगी।
नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत समिति की सिफारिश के आधार पर प्रदेश सरकार की तरफ से शासनादेश जारी किए गए हैं। सिफारिश में कोरोना महामारी के तहत बिल्डरों को 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2022 तक शून्य काल का लाभ दिया जाएगा। ओखला बर्ड सेंचुरी के 10 किलोमीटर के दायरे में एनजीटी के आदेश के क्रम में 14 अगस्त 2013 से 19 अगस्त 2015 तक जीरो पीरियड का लाभ मिलेगा।
यह केस टू केस पर लागू होगा। शून्य काल का लाभ लेने के बाद बकाया धनराशि का 25 प्रतिशत 60 दिनों के भीतर जमा करना होगा। शेष 75 प्रतिशत पैसा साधारण ब्याज के साथ 3 साल में जमा करना होगा। अब को-डेवलपर को परियोजना पूरी करने की अनुमति मिल सकेगी। प्राधिकरण को बकाया धन राशि देने की जिम्मेदारी दोनों की होगी।
भाजपा के वरिष्ठ प्रवक्ता और समाजसेवक गोपाल कृष्ण अग्रवाल के मुताबिक, बिल्डर बायर्स की ये लड़ाई बहुत पुरानी है। होम बायर्स एक तरफ फंसे प्रोजेक्ट में पैसे इन्वेस्ट कर चुके हैं। बैंक का लोन भी चल रहा है। किराए के मकान में भी किराया दे रहे हैं।
2016 में जब आईबीसी नया-नया लागू हुआ था, तब होम बायर्स फाइनेंशियल क्रिटर्स के अंतर्गत कानूनी तौर पर नहीं इन्वॉल्व थे। इसीलिए वह कमेटी ऑफ क्रिटर्स के सदस्य नहीं थे। वित्त मंत्री और अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्ट्री में बात कर कानून में बदलाव किया गया और होम बायर्स को जोड़ा गया।
केंद्र सरकार ने स्वामी फंड बनाया लेकिन फिर भी कोई हल निकलता नहीं दिखाई दे रहा था। सबसे बड़ी समस्या स्टॉल्ड प्रोजेक्ट की थी जिसके अंदर किसी न किसी तरह से जो प्रमोटर्स डेवलपर बिल्डर हैं, उन्होंने पैसा डायवर्ट कर दिया, प्रोजेक्ट को आगे कंस्ट्रक्शन नहीं कर रहे थे। स्टॉल्ड प्रोजेक्ट में रजिस्ट्रेशन और कंप्लीशन और ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट की बड़ी समस्या है।
सरकार ने अमिताभ कांत के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई और समस्या का समाधान निकालने की कोशिश शुरू की। इसी बीच गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने भी व्हाइट पेपर निकाला। इसमे उन्होंने अलग-अलग स्टेकहोल्डर से बात करते हुए रिपोर्ट बनाई, जिसमें रजिस्ट्रेशन वाला इश्यू अच्छा सॉल्यूशन है। लेकिन फोकस स्टॉल्ड प्रोजेक्ट को कैसे दोबारा चालू किया जाए ताकि बायर्स को राहत मिल सके, इस पर है।
गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने जब व्हाइट पेपर निकाला तो उसमे ये बताया गया कि समस्या का कारण यह है कि जो अथॉरिटी ने लैंड दी थी, बिल्डर को लिगसी इश्यू में तो उसमें इंस्टॉलमेंट पर दे दी और उसका जो ओनरशिप है वह ट्रांसफर नहीं किया गया और प्रोमोटर्स ने इंस्टॉलमेंट देना अथॉरिटी को बंद कर दिया। दूसरी तरफ इस प्रोजेक्ट पर बैंक से लोन ले लिया और बायर्स से भी पैसा लेकर उनसे फंड भी डायवर्ट कर दिया।
इस पर कुछ महावपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं। इनमें प्राधिकरणों ने बिल्डर्स पर बहुत हैवी पेनल्टी और इंटरेस्ट रेट लगा रखे हैं। जिसके कारण लायबिलिटी खड़ी हो गई है। इसके लिए इंटरेस्ट और पेनल्टी को हटाना पड़ेगा और मूल लेना होगा।
अगर डेवलपर्स के पास एक्सेस लैंड है, जिस पर प्रोजेक्ट नहीं बनाएं गए हैं तो उसका वन टाइम सरेंडर पॉलिसी स्टेट गवर्नमेंट को लेकर आनी पड़ेगी। इस मामले में बैंक को भी हेयरकट के लिए तैयार करना पड़ेगा, क्योंकि उनका पैसा अल्टीमेटली डूब चुका है।
आरबीआई के माध्यम से वह उनके हेयरकट के लिए भी फॉलो करना पड़ेगा। आने वाले समय में इस प्रोजेक्ट को रिवाइव करने के लिए कितना और एडिशनल अमाउंट चाहिए, इस राशि का भी निर्धारित करने की आवश्यकता है।
स्वामी फंड जो केंद्र सरकार रिकंस्ट्रक्शन के लिए लोन देने के लिए है, उसे अलग से 25 हजार करोड़ से बढ़ा कर 50 हजार करोड़ करना होगा।
–आईएएनएस
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