बीजिंग, 5 सितंबर (आईएएनएस)। भारत ने एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लिया और यह भी बताने की कोशिश की कि एससीओ की स्थापना के उद्देश्य को फिर से याद दिलाया गया। इस संगठन की स्थापना का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा के मुद्दे पर सहयोग करना है।
मौजूदा अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम, विशेषकर रूस-यूक्रेन संघर्ष और अमेरिका के टैरिफ युद्ध को लेकर भी इस मंच की बैठक में सभी सदस्य देशों का रुख ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। अमेरिकी टैरिफ युद्ध के खिलाफ इस बैठक में रणनीतिक कदम उठाए जाने की उम्मीद भी बढ़ी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की भारत के खिलाफ कड़े टैरिफ कार्रवाई से भारत-अमेरिकी संबंधों में अनिश्चितता का माहौल दिख रहा है। भारत समेत कुछ और देशों के लिए एससीओ अमेरिकी चुनौती से निपटने का मंच बन सकता है। भारत के लिए एससीओ की शिखर बैठक महत्वपूर्ण मौका साबित हो सकती है।
यह भी हो सकता है कि भारतीय और चीनी पक्ष के लिए अपनी यूरेशियन कूटनीति को नया आयाम और ओरिएंटेशन देने की कोशिश कर सकते हैं। इस तरह से भारत के लिए शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन एक बहुपक्षीय बैठक से कहीं ज्यादा मायने रखता है। चीन के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को लेकर भी यह शिखर बैठक अहम् होता है।
बहुपक्षीय वार्ता के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक की गई। इसकी भूमिका चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की चीन यात्रा के साथ बन चुकी है। इसका असर अमेरिकी टैरिफ युद्ध के दौर में अमेरिका पर ही कहीं ज्यादा पड़ने के आसार हैं।
(विकास आनंद दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर)
(प्रस्तुति, उमेश चतुर्वेदी)
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
–आईएएनएस
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