नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह “नाम पुकारे जाने” से नाराज नहीं है और न्यायसंगत और निष्पक्ष आलोचना के लिए खुला है, लेकिन अदालत या न्यायिक प्रणाली के कामकाज में बाधा डालने वाली किसी भी चीज को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की खंडपीठ कुछ अवमाननाकर्ताओं के खिलाफ शुरू किए गए स्वत: संज्ञान आपराधिक अवमानना मामले की सुनवाई कर रही थी।
मामला तब का है, जब 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की नजरबंदी और ट्रांजिट रिमांड के आदेश को रद्द करने के जज के आदेश के संबंध में जस्टिस एस. मुरलीधर के खिलाफ ट्वीट पोस्ट किए गए थे।
पीठ ने कहा, ”हम उचित और निष्पक्ष आलोचना का स्वागत करते हैं…जिसकी सराहना नहीं की जा सकती, वह कुछ ऐसी चीज है, जिसके बारे में हम नहीं कह सकते कि यह अदालत की महिमा को कम करती है, लेकिन अदालत और व्यवस्था के कामकाज में बाधा डालती है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
“हम नाम पुकारे जाने से नाराज नहीं हैं, लेकिन जब व्यवस्था बाधित होती है तो हम बहुत चिंतित होते हैं।”
कथित अवमाननाकर्ताओं में से एक, लेखक आनंद रंगनाथन की ओर से पेश वकील जे साई दीपक ने अदालत को अवगत कराया कि उन्होंने एक हलफनामा दायर किया है, जिसमें उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि उनका बयान मामले के विशिष्ट तथ्यों पर कोई टिप्पणी नहीं है, बल्कि सामान्य प्रकृति का है। उन्होंने अदालत के समक्ष आगे कहा कि मामले में बिना शर्त माफी मांगना अवमानना कार्यवाही में आरोपों को स्वीकार करने के समान होगा।
मामले की सुनवाई के बाद पीठ ने इसे 9 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
–आईएएनएस
एसजीके