जबलपुर. मप्र हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा है कि किसी भी मार्ग पर अस्थाई परमिट जारी करने से पूर्व परिवहन अधिकारी यह आकलन कर लें कि आवश्यकता है या नहीं. यदि आवश्यकता का अनुभव हो तो ही नए अस्थाई परमिट जारी किए जाएं.
जस्टिस एमएस भट्टी की एकलपीठ ने पूरे प्रदेश में इस आदेश का पालन सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी प्रमुख सचिव परिवहन को दी है. उन्हें निर्देशित किया है कि वे क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरणों के साथ-साथ राज्य में फैले क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरणों के सचिवों को आदेश प्रसारित करें ताकि भविष्य में अस्थायी परमिट के लिए आवेदन पर विचार करते समय उसी मार्ग पर आपरेटरों की मौजूदा संख्या अनुरूप अस्थाई परमिट की आवश्यकता पर उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में विचार किया जा सके.
दरअसल यह मामला याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी बस संचालक रोहत सिंह दीक्षित की ओर से दायर किया गया था. जिसमें कहा गया कि जबलपुर के विभिन्न मार्गों में निरंतरता से अस्थाई परमिट जारी किए जा रहे हैं. आरटीओ जबलपुर द्वारा बिना किसी अस्थाई आवश्यकता के एवं मार्ग पर पूर्व से संचालित वाहनों का आकलन किये बगैर अस्थाई परमिट दिया गया, जो अधिनियम की धारा के विहित प्रविधान के विपरीत है.
नियमानुसार अस्थाई परमिट विशिष्ट अतिरिक्त आवश्यकता पर ही दिया जा सकता है. इस संबंध में हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दिए आदेश मार्गदर्शी हैं, जिनमें अस्थाई परमिटों को निरस्त करते हुए यह निर्देश दिए गये थे कि अस्थाई परमिट देने के लिए मोटर या अधिनियम में वर्णित स्पष्ट प्रविधान को अध्ययन किया जाये, जिसमें लिखा है कि विशिष्ट अतिरिक्त आवश्यकता पर ही लिमिटेड समय के लिए अस्थाई परमिट दिया जाना चाहिये.
परिवहन अधिकारी को उस मार्ग पर पूर्व से संचालित वाहनों की संख्या का अवलोकन करना चाहिए और यदि आवश्यकता हो तभी अतिरिक्त वाहन के संचालन हेतु अस्थाई परमिट दिया जाना चाहिये. अस्थाई परमिट एवं स्थाई परमिट देने की प्रक्रिया पूर्णत: अलग-अलग है. सुनवाई पश्चात् न्यायालय ने उक्त निर्देश दिये.