चेन्नई, 26 फरवरी (आईएएनएस)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने पहली बार एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मॉडल विकसित किया है, जो भारतीय आबादी के लिए विशिष्ट है और गर्भवती महिला में उसकी दूसरी व तीसरी तिमाही में भ्रूण की उम्र का सटीक निर्धारण कर सकता है।
भ्रूण की सटीक आयु, गर्भकालीन आयु गर्भवती महिलाओं की उचित देखभाल और सटीक प्रसव तिथियां निर्धारित करने में भी मदद करती है।
वर्तमान में, भारत में चिकित्सक पश्चिमी आबादी के लिए विकसित एक फार्मूले का उपयोग करके गर्भकालीन आयु निर्धारित करते हैं, इससे त्रुटि की संभावना बढ़ जाती है।
ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (टीएचएसटीआई), फरीदाबाद सहित शोधकर्ताओं की टीम ने सोमवार को कहा कि ‘गर्भिनी-जीए2’ नामक नया मॉडल भारतीय आबादी के लिए भ्रूण की उम्र का सटीक अनुमान लगाता है, इससे त्रुटि लगभग तीन गुना कम हो जाती है।
पीयर-रिव्यू जर्नल लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया में प्रकाशित अध्ययन में उन्होंने कहा, “यह भारतीय जनसंख्या डेटा का उपयोग करके विकसित और मान्य किया जाने वाला पहला अंतिम-तिमाही गर्भकालीन आयु अनुमान मॉडल है।”
नया मॉडल नवजात शिशुओं की देखभाल में भी सुधार कर सकता है, इससे भारत में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी।
यह शोध ‘जन्म परिणामों पर उन्नत अनुसंधान के लिए अंतःविषय समूह – डीबीटी इंडिया इनिशिएटिव’ (‘गर्भिनी) कार्यक्रम का भी हिस्सा है।
भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने सोमवार को एक बयान में कहा,“’गर्भिनी डीबीटी का एक प्रमुख कार्यक्रम है, और गर्भकालीन आयु का अनुमान लगाने के लिए इन जनसंख्या-विशिष्ट मॉडल का विकास एक सराहनीय परिणाम है। इन मॉडलों को पूरे देश में मान्य किया जा रहा है।”
आईआईटी मद्रास के सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोलॉजी एंड सिस्टम्स मेडिसिन के समन्वयक और डेटा का नेतृत्व करने वाले डॉ. हिमांशु सिन्हा ने कहा,“आईआईटी मद्रास भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के उद्देश्य से जमीनी स्तर और स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल समस्याओं को हल करने में योगदान दे रहा है। इस उद्देश्य से, हम प्रतिकूल जन्म परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए उपकरण बनाने के लिए उन्नत डेटा विज्ञान और एआई/एमएल तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। इस दिशा में पहला कदम सटीक जीए मॉडल विकसित करना है, जो पश्चिमी आबादी का उपयोग करके डिजाइन किए गए वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले मॉडल की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन करते हैं।”
गर्भिनी-जीए2 ने नियमित रूप से मापे जाने वाले तीन भ्रूण अल्ट्रासाउंड मापदंडों का उपयोग किया, और इसे हरियाणा के गुरुग्राम सिविल अस्पताल में प्रलेखित गर्भिनी कोहोर्ट डेटा का उपयोग करके विकसित किया गया था, और दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र कोहोर्ट में मान्य किया गया था।
शोधकर्ताओं ने कहा कि एक बार संभावित अखिल भारतीय समूहों में मान्य होने के बाद, इस गर्भिनी-जीए2 को पूरे भारत के क्लीनिकों में तैनात किया जा सकता है, इससे प्रसूति विशेषज्ञों और नवजात विशेषज्ञों द्वारा दी जाने वाली देखभाल में सुधार होगा, इससे भारत में मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी।
गर्भिनी कार्यक्रम के प्रमुख अन्वेषक और प्रतिष्ठित प्रोफेसर डॉ. शिंजिनी भटनागर ने कहा,”गर्भकालीन आयु सटीकता में सुधार करना गर्भिनी अध्ययन के व्यापक लक्ष्यों का एक महत्वपूर्ण घटक है, इसका उद्देश्य गर्भावस्था के प्रतिकूल परिणामों को कम करना है।”
–आईएएनएस
सीबीटी/