मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।
–आईएएनएस
पीके/एसकेपी
ADVERTISEMENT
मुंबई, 7 जुलाई (आईएएनएस)। भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जो धर्म के नाम पर फैले आतंकवाद का सामना कर रहा है। हर कोई जानता है कि कैसे धार्मिक कट्टरता का इस्तेमाल देश के सामाजिक ताने-बाने को तबाह करने के लिए किया जा रहा है।
फिल्म: 72 हूरें
फिल्म की अवधि: 80 मिनट
कलाकार: पवन मल्होत्रा, आमिर बशीर, सरू मैनी, रशीद नाज़, अशोक पाठक और नम्रता दीक्षित
निर्देशक: संजय पूरन सिंह चौहान
आईएएनएस रेटिंग: 4 स्टार
’72 हूरें’ में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवाद हमारे दैनिक जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालता है। शायद ही कोई ऐसी फिल्म हो, जो युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने और धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या करने पर सवाल उठाती हैं।
निर्देशक संजय पूरन सिंह चौहान की ’72 हुरें’ लोगों को बरगलाकर आतंकवादी बनाने और उन्हें हत्या की मशीन में बदलने के घटिया खेल का पर्दाफाश करती है।
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएं एक संदेश देती है और सीधे आतंकवादी सिंडिकेट के अपराधियों पर उंगली उठाती है और उनके कट्टर एजेंडे को उजागर करती है।
अनिल पांडे की शानदार कहानी और संजय पूरन सिंह चौहान का दमदार निर्देशन इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है। धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद की काली हकीकतों से घिरी इस फिल्म की कहानी इतनी दिलचस्प है कि दर्शक अंत तक स्क्रीन से बंधे रहेंगे।
गौरतलब है कि फिल्म किसी विशेष समुदाय पर उंगली नहीं उठाती है या कुछ खूंखार आतंकवादियों के कृत्य के लिए पूरे समुदाय पर आरोप नहीं लगाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे आतंकवाद का कृत्य धार्मिक उपदेशों से गहराई से जुड़ा हुआ है जिसका दुरुपयोग खूंखार आतंकवादियों द्वारा निर्दोष लोगों का ब्रेनवॉश करने और उन्हें हत्या की मशीनों में बदलने के लिए किया जाता है।
सच तो यह है कि हम लंबे समय से धर्म के नाम पर होने वाले ऐसे आतंकवादी कृत्यों के गहरे असर को नजरअंदाज करते रहे हैं। इससे आतंकवादी अपने हमलों में और अधिक मजबूत हो गए हैं और अब वे लोगों को मारने से पहले एक बार भी नहीं सोचते।
फिल्म कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स, डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग तक सभी विभागों में उत्कृष्ट है। फिल्म देखकर आपको ऐसा महसूस होता है कि आप स्क्रीन पर कोई नाटक नहीं देख रहे हैं, बल्कि आतंकवाद की भयावह घटनाओं को लाइव देख रहे हैं जो आपको अंदर से झकझोर कर रख देती हैं।
फिल्म में आतंकवाद के ध्वजवाहकों की भूमिका निभाते हुए, पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर ने सराहनीय काम किया है। इन दोनों शानदार एक्टर्स की आप जितनी भी तारीफ करें वो कम होगी। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन तरीके से निभाया है। शानदार और सटीक कास्टिंग तारीफ के काबिल पात्र है।
दर्शकों के लिए यह फिल्म देखना जरुरी है, क्योंकि यह धर्म और आतंकवाद के बीच संबंध को शानदार ढंग से उजागर करती है, और धार्मिक कट्टरता के मुद्दे को उठाती है।