फिल्म: चांदलो (जियो सिनेमा पर स्ट्रीमिंग)
फिल्म की अवधि: 115 मिनट
निर्देशक: हार्दिक गज्जर
कलाकार: मानव गोहिल, श्रद्धा डांगर, जयेश मोरे, काजल ओझा वैद्य और ओजस रावल
निर्माता: जियो स्टूडियोज, पार्थ गज्जर और पूनम श्रॉफ
आईएएनएस रेटिंग: ***1/2
हार्दिक गज्जर द्वारा निर्देशित ‘चांदलो’ प्यार में दूसरे मौके के बारे में परिपक्व और सम्मोहक फिल्म है।
‘चांदलो’ में काजल ओझा वैद्य लीड रोल में है। शॉर्ट स्टोरी पर आधारित रिवॉल्यूशन थीम वाली यह फिल्म गुजराती में बनने के बावजूद यूनिवर्सल अपील बन गई है। यह फिल्म सभी भाषाओं में एक अच्छे प्रोडक्शन के रूप में धूम मचा रही है।
यह कहानी किसी को खोने और फिर एक बार प्यार पाने के भावनात्मक और तार्किक बोझ को उजागर करती है। लेकिन कौन कहता है कि बढ़ती उम्र में दूसरी बार प्यार में पड़ना और शादी करना आसान काम है? हमारा समाज और सांस्कृतिक रीति-रिवाज सबसे बड़ी बाधाएं हैं और निर्देशक ने इस विषय को बड़ी ही बारीकी से प्रदर्शित किया हैं।
जैसे-जैसे नायक-नायिका के बीच जुड़ाव और रिश्ते खुलते हैं, कहानी जटिल और दिलचस्प हो जाती है। कलाकारों के बीच की केमिस्ट्री शाब्दिक और आलंकारिक रूप से समीकरण को बदल देती है, और इसके साथ हम पाते हैं कि निर्देशन के अलावा, लेखन भी फिल्म का बेहद मजबूत तत्व है।
‘चांदलो’ टाइटल के दो मतलब हैं और फिल्म के संदर्भ में दोनों उभरकर सामने आए हैं। एक मतलब है किसी शुभ अवसर पर दिया जाने वाला उपहार, और दूसरा मतलब है बिंदी। फिल्म में दोनों प्रमुख महिला किरदारों के माथे से बिंदी गायब है।
आस्था (श्रद्धा डांगर) एक युवा महिला है, जो सास प्रोफेसर मीरा (काजल ओझा वैद्य) के साथ रहती है। उनके जीवन में तब उथल-पुथल आ जाता है जब गजल गायक शरण (मानव गोहिल) उनके जीवन में प्रवेश करता है और उसी बिल्डिंग में रहने लगता है जिसमें वे रहते हैं।
कहानी लव ट्राएंगल की तरह लग सकती है, लेकिन यह तीनों के बीच की सहज केमिस्ट्री है, जो उनके प्रति सहानुभूति पैदा करेगी। जीवन के प्रति उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण सकारात्मक होता है।
कहानी में रूपांतर पर भी खास काम किया गया है, जैसे इसमें एक डायलॉग है- “आप एक पक्षी को वर्षों तक पिंजरे में रखते हैं और फिर आप पिंजरे को खोल सकते हैं। यह जरूरी नहीं है कि वह उड़ जाएगा। उसमें आजादी का विचार नहीं है।” यह डायलॉग बुजुर्ग महिला द्वारा प्यार को अस्वीकार करने के सार को व्यक्त करता है।
फिल्म में कास्टिंग परफेक्ट है। अपने दायित्वों को पूरा करने वाली बुजुर्ग महिला का किरदार काजल ओझा वैद्य ने शानदार ढंग से निभाया है। वह अपनी भावनाओं को प्रभावी ढंग से प्रदर्शित करने में माहिर हैं। आप उनके दर्द और दुख से खुद को जोड़ पाएंगे।
श्रद्धा डांगर ने उनका बखूबी साथ दिया है, जो आस्था की भूमिका में हैं। वहीं, स्क्रीन पर मानव गोहिल की एक्टिंग भी शानदार रही है।
जयेश मोरे तापस के रूप में, जो मीरा का दोस्त और सहकर्मी है, ने अपने किरदार को शिद्दत के साथ निभाकर फैंस को अपना कायल बना लिया है। इसी तरह, बाकी सहायक कलाकार भी उम्मीद से बेहतर काम करते दिखे हैं।
कुल मिलाकर, फिल्म निश्चित रूप से दर्शकों में भावनात्मक जुड़ाव पैदा करेगी।
–आईएएनएस
पीके/एकेजे