नई दिल्ली, 3 सितंबर (आईएएनएस)। ‘आईसी 814: द कंधार हाईजैक’ वेब सीरीज पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। इस विवाद को लेकर आईसी-814 के केबिन क्रू प्रमुख अनिल शर्मा ने आईएएनएस से खास बातचीत की है।
अनिल शर्मा ने कहा कि पहला विवाद जो लोगो ने नोटिस किया, वह दो हाईजैकर, जिनके नाम भोला और शंकर बताए गए हैं, के बारे में है। ये अपहर्ताओ के काल्पनिक नाम हैं, जबकि वास्तविकता में, उनके नाम कुछ और ही थे। इसे हाईलाइट किया जाना चाहिए था। मुझे वेब सीरीज बनाने वालों के इरादे ठीक नहीं लगे। केबिन का सीन भी विवाद वाला है। किसी क्रू को लहूलुहान नहीं किया। अपहर्ताओं ने एयर होस्टेस को थप्पड़ भी नहीं मारा था। पता नहीं ये क्यों हाईलाइट किया गया।
शर्मा ने कहा, उससे पहले जितने भी एयरक्राफ्ट हाईजैक हुए थे, डेढ़ दिन के अंदर मामले का समाधान हो जाता था। विमान में एक यात्री की हत्या के बाद उसकी बाॅडी उठाने के लिए मुझे और मेरे सहयोगी को दुबई, एयरपोर्ट पर बुलाया गया। वहां पता चला कि मामला बहुत संगीन है। उस समय सिस्टम उतने एडवांस नहीं थे। आज की टेक्नोलॉजी काफी आगे निकल गई है। इस पूरे घटना से तमाम बड़े अधिकारी जुड़े हुए थे। जो भी कहिए, ये घटना तो हुई थी। बहुत कुछ हुआ था, मेरी टिप्पणी करने से कुछ बदलने वाला नहीं है।
उन्होंने कहा कि जसवंत सिंह की आलोचना कर देना बहुत आसान है, उनके कंंधार जाने से बहुत फर्क पड़ा। तीन आतंकवादियों मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर को छोड़ने की भारत ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। उसके बाद उन आतंकियों ने भारत में कई हमले कराए। इसमें पाकिस्तान का भी हाथ रहा।
आज की डिजिटल की दुनिया में जागरूकता बहुत बढ़ चुकी है। आज की जनता जागरूक हो जाती है। ये देखकर अच्छा लगता है कि हम अब पहले से ज्यादा सचेत हैं। फिल्मों में ऐसे दृश्यों को लेकर एक बॉडी होनी चाहिए, जो इस पर फैसला कर सके। अंकुश बहुत जरूरी है, ताकि किसी को भड़काया न जा सके।
उन्होंने आगे कहा कि दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि जो लोग इसकी तरफदारी कर रहे है, मेरे हिसाब से यह ठीक नहीं है। सब कुछ पैसा कमाने से नहीं मापा जा सकता। मन में भी ये बात होनी चाहिए कि मैं गलत कर रहा हूं। जो एक सोच में ढले हुए है, उनको लगता है कि मैं ठीक कर रहा हूं।
आपको बता दें कि वेब सीरीज ‘आईसी 814: द कंधार हाईजैक’ 29 अगस्त ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। इसमें 1999 में नेपाल के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरने वाली इंडियन एयरलाइंस की ‘आईसी 814’ फ्लाइट को पांच आतंकवादियों द्वारा हाईजैक करने की कहानी को दिखाया गया है। जैसे ही फ्लाइट हवा में पहुंची, विमान में सवार पांच आतंकियों ने उसे हाईजैक कर लिया। विमान में 176 यात्री सवार थे, इनमें से कुछ विदेशी भी थे।
विमान को शाम को नई दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचना था, लेकिन थोड़ी देर बाद ही उसके हाईजैक होने की जानकारी मिली। फ्लाइट को बंदूक की नोक पर दिल्ली की बजाय अमृतसर ले जाया गया, क्योंकि उसका ईंधन खत्म हो रहा था। कुछ समय तक विमान अमृतसर रुका रहा, फिर भी वो काम नहीं हुआ, जिसके लिए उतारा गया था। नतीजतन आतंकियों निर्देश पर पायलट विमान को लाहौर लेकर पहुंचा।
यहां भी फ्लाइट आईसी 814 ने उतरने की अनुमति मांगी, मगर पाकिस्तानी एटीसी ने उसे अस्वीकार कर दिया। बाद में विमान को उतरने की परमिशन मिली और ईंधन भरने के बाद विमान को संयुक्त अरब अमीरात के अल मिन्हाद एयर बेस पर उतारा गया। यहां अपहरणकर्ताओं ने 27 यात्रियों को रिहा कर दिया। वहां से विमान सीधे अफगानिस्तान के कंधार के लिए रवाना हो गया।
जिन पांच आतंकियों ने फ्लाइट को हाईजैक किया था, वे सभी पाकिस्तानी थे। उनका मकसद था भारत की जेल में बंद मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर की रिहाई। जनवरी 2000 की विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, विमान में सवार अपहरणकर्ताओं ने अपने नाम को छिपाया था और वे काल्पनिक नाम चीफ, डॉक्टर, बर्गर, भोला और शंकर नाम से एक-दूसरे को संबोधित करते थे।
विमान का अपहरण करने वाले आतंकवादी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन के पांच आतंकवादियों के नाम इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहिम और शाकिर था।
25 और 26 दिसंबर को भारत की ओर से बातचीत का दौर शुरू हुआ। 27 दिसंबर को भारत सरकार ने गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक काटजू की अध्यक्षता में एक टीम को कंधार के लिए रवाना किया। इसमें गृह मंत्रालय के अधिकारी अजीत डोभाल और सीडी सहाय भी शामिल थे।
विमान हाईजैक के लगभग आठ दिन के बाद 31 दिसंबर 1999 को सभी नागरिकों को रिहा कर दिया गया। नागरिकों की रिहाई के बदले में अपहरणकर्ताओं को मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर को सौंपा गया। खौफ भरे आठ दिन के बाद सभी नागरिकों को सकुशल भारत लाया गया। जिस वक्त विमान हाईजैक हुआ था, उस समय भारत में एनडीए की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। आतंकियों की रिहाई के लिए सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था।
इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने की थी। उन्होंने 10 लोगों को आरोपी बनाया था, इनमें पांच अपहरणकर्ताओं सहित सात आरोपी अभी भी फरार हैं और उनके ठिकानों के बारे में आज तक पता नहीं लग पाया है।
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी