कोलकाता, 27 दिसम्बर (आईएएनएस)। राजनीतिक विश्लेषकों और पर्यवेक्षकों के मुताबिक वर्ष 2023 तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण होगा और ये चुनौती तीन कारणों से होगी।
पहली चुनौती स्पष्ट रूप से पश्चिम बंगाल में 2023 में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होंगे। तृणमूल कांग्रेस के लिए चिंता यह नहीं है कि क्या वे चुनाव में नियंत्रण बनाए रखेंगे। वास्तविक चुनौती यह है कि क्या राज्य प्रशासन रक्तपात एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में सक्षम होगा या नहीं। राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी पर हिंसा फैलाकर ग्रामीण निकाय चुनाव जीतने का आरोप लगता रहा है।
उधर, भाजपा, सीपीआई (एम) और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं से अवैध आग्नेयास्त्रों, विस्फोटकों और बमों की नियमित बरामदगी ने रक्तपात और हिंसा की आशंका बढ़ा दी है। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव कुणाल घोष ने दावा किया कि ये बरामदगी इस बात का सबूत है कि राज्य प्रशासन ऐसी वस्तुओं को बरामद करने और शांतिपूर्ण पंचायत चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कितना उत्सुक है।
घोष ने कहा, जैसा कि हमारे राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के लोकसभा सदस्य अभिषेक बनर्जी ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि पंचायत चुनाव बिल्कुल शांतिपूर्ण होंगे और पार्टी नेतृत्व किसी भी पार्टी को उनकी पार्टी की छवि को खराब करने को बर्दाश्त नहीं करेगी।
अनुभवी राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार अमल सरकार के अनुसार आगामी पंचायत चुनाव सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के लिए अवसर और चुनौती दोनों है।
इस पर विस्तार से बताते हुए सरकार ने कहा, विभिन्न अनुदान योजनाओं के कारण मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की लोकप्रियता अभी भी ग्रामीण गरीबों के बीच बरकरार है, जिनके लिए इन योजनाओं के तहत अनुदान आजीविका का आवश्यक साधन है। हालांकि तृणमूल कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि बहुमत से उनका मतलब 51 प्रतिशत नहीं है, उनके लिए बहुमत का मतलब 100 प्रतिशत नहीं, तो कम से कम 80 प्रतिशत है।
जैसा कि घटनाओं के हालिया क्रम से स्पष्ट है कि तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक कामकाजी संबंध विकसित करने के लिए बेताब है।
ऐसे में अगर तृणमूल कांग्रेस उस 100 प्रतिशत या कम से कम 90 प्रतिशत पर कब्जा सुनिश्चित करने के लिए इसी तरह की हिंसा का सहारा लेती है, तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ एक व्यावहारिक संबंध विकसित करने के उनके प्रयासों को निश्चित रूप से झटका लगेगा, क्योंकि न तो प्रधान मंत्री और न ही केंद्रीय गृह मंत्री राज्य में अपनी पार्टी के हितों का त्याग करेंगे, यह देखते हुए कि 2019 में उन्होंने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 19 पर जीत हासिल की थी।
सत्ताधारी पार्टी के लिए दूसरी चुनौती भ्रष्टाचार के मुद्दों पर हमले का एक सटीक जवाब होगा। गौरतलब है कि विपक्षी दल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को लगातार घेर रहे हैं।
वरिष्ठ तृणमूल कांग्रेस विधायक तापस रॉय का कहना है कि भाजपा शासित मध्यप्रदेश में व्यापमं घोटाला और त्रिपुरा में शिक्षकों की भर्ती में अनियमितता को देखते हुए कम से कम भाजपा और माकपा को भ्रष्टाचार के मुद्दों पर उनकी पार्टी पर उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है।
राय ने कहा, अदालत की टिप्पणियों के संबंध में हमारे पास कहने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि ये न्यायिक मामले हैं। केंद्रीय एजेंसी की जांच के संबंध में हमारी पार्टी का रुख स्पष्ट है कि जब हम भ्रष्टाचार के बारे में जीरे टॉलरेंश की नीति को बनाए रखते हैं, उसी समय हम मांग करते हैं केंद्रीय एजेंसियों को अपनी जांच प्रक्रियाओं को साल भर घसीटने के बजाय समयबद्ध आधार पर पूरा करना चाहिए।
वयोवृद्ध राजनीतिक विश्लेषक और कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार राजगोपाल धर चक्रवर्ती ने कहा कि विपक्षी हमलों का मुकाबला करने में तृणमूल कांग्रेस के नेता अपना जवाब देने के लिए निराधार तर्क का सहारा ले रहे हैं।
उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि वे एक गलती को दूसरी गलती का हवाला देकर सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि विपक्ष इस भ्रष्टाचार के मुद्दे को जमीनी स्तर तक कैसे ले जा सकता है और मतदाताओं की मानसिकता को प्रभावित कर सकता है।
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य और पश्चिम बंगाल में पार्टी के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम के अनुसार यह स्पष्ट है कि अदालत की निगरानी वाली केंद्रीय एजेंसी की जांच के दबाव में मुख्यमंत्री ने वस्तुत: भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।
सलीम ने पूछा, वैध पासपोर्ट होने के बावजूद मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्यों को अदालत से अनुमति मिलने के बाद ही विदेश यात्रा करनी पड़ती है। इस तरह के आत्मसमर्पण के लिए और क्या कारण हो सकता है?
अगले साल तृणमूल कांग्रेस के लिए तीसरी और अंतिम चुनौती 2024 के लोकसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में अपनी राष्ट्रीय स्तर की प्रासंगिकता बनाए रखने की होगी।
जबकि मुख्यमंत्री ने पूरे विश्वास के साथ कहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल जैसे सभी प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ एकजुट हो जाएंगे।
अनुभवी राजनीतिक टिप्पणीकार शांतनु सान्याल ने बताया कि कैसे तृणमूल कांग्रेस सचमुच एक चट्टान और एक कठिन जगह के बीच फंसी हुई है।
उन्होंने कहा, उपराष्ट्रपति के चुनाव में उनकी पार्टी के रुख के बाद, जहां तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा का समर्थन करने के बजाय, मतदान से दूर रहने का फैसला किया। इससे राष्ट्रीय स्तर पर गैर-भाजपा दलों के बीच उनकी विश्वसनीयता में कमी आई है।
ममता बनर्जी के लिए अपनी राष्ट्रीय प्रासंगिकता बनाए रखना संभव है, यदि वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ एक मौन समझौता करती हैं। वाम दल व कांग्रेस उनके भाजपा की ओर झुकाव का प्रचार कर रहे हैं। ऐसे में तृणमूल का अल्पसंख्यक वोट बैंक प्रभावित होने की आश्ांका है।
अगला साल राष्ट्रीय स्तर की प्रासंगिकता हासिल करने टीएमसी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है।
–आईएएनएस
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