नई दिल्ली, 3 जनवरी (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली में एक रैली को संबोधित करते हुए आपातकाल के दिनों को याद किया।
जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल के दौरान दिल्ली के अशोक विहार में बिताए अपने गुप्तवास के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “जब आपातकाल लागू किया गया, तो देश इंदिरा गांधी के तानाशाही शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहा था और आपातकाल के खिलाफ संघर्ष जारी था। इस दौरान मेरे साथी भूमिगत आंदोलन का हिस्सा थे, और अशोक विहार वह जगह थी, जहां मैं ठहरा था।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति में आने से पहले लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में सामाजिक कार्य किया है। दिल्ली के अशोक विहार के विजय राजपाल ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए आपातकाल के दौरान पीएम मोदी के साथ बिताए पलों को याद किया।
विजय राजपाल ने बताया, “मैंने पहली बार नरेंद्र मोदी से 1973 में संघ कार्यालय अहमदाबाद में मुलाकात की थी। इसके बाद हमारी अच्छी बातचीत शुरू हुई। हम अक्सर फोन पर बात करते और पत्रों का आदान-प्रदान करते थे।”
जब देश में आपातकाल घोषित हुआ, तो राजपाल और नरेंद्र मोदी के बीच संबंध और भी गहरे हो गए। राजपाल उस समय को याद करते हुए कहते हैं, “एक दिन मुझे नरेंद्र मोदी का फोन आया और उन्होंने पूछा कि क्या मैं आपके घर रह सकता हूं? मैंने तुरंत कहा कि वह कभी भी आ सकते हैं, हम उन्हें परिवार की तरह मानते थे। वह हमारे घर में रहे। वह गुजराती होते हुए भी हमारे पंजाबी भोजन को खुशी-खुशी खाते थे, जैसे वह हमारे परिवार का हिस्सा हों।”
आपातकाल के दौरान गुजरात के सिनेमाघरों में जो ‘वांटेड’ लोगों के फोटो दिखाए जाते थे, उनमें नरेंद्र मोदी जी का भी फोटो शामिल था। उस समय गुजरात पुलिस नरेंद्र मोदी जी को ढूंढ रही थी। उन्हें अपनी गतिविधियां गुप्त रूप से जारी रखनी थी। जैसे देशभर में अन्य संघ कार्यकर्ता कर रहे थे।
राजपाल बताते हैं कि दिल्ली में उनकी सुरक्षा के लिए उन्होंने एक अनूठा उपाय निकाला। राजपाल ने कहा, “उस समय मोदी ने हल्की दाढ़ी बढ़ा ली थी और वह पैंट और आधी बाजू की सफेद शर्ट पहनते थे। उन्होंने खुद को सिख के रूप में ढाल लेने का सोचा, जो अन्य विकल्पों से कम जोखिमपूर्ण था। मोदी ने मुझसे पूछा कि इसे कैसे करेंगे? हम इसके लिए चांदनी चौक गए। वहां मोती सिनेमा के पास एक दुकान से पगड़ी का कपड़ा खरीदा और फिर उन्हें दिल्ली में स्थित एक जगह सब्जी मंडी ले गए, जहां मेरे मामा जी के दोस्त एक सरदार जी थे। उन्होंने मोदी जी को सरदारों की तरह पगड़ी बांधी। तब से वह पगड़ी पहने रहने लगे।”
राजपाल बताते हैं, “उस दौरान मोदी जी ने मेरे साथ दिल्ली से सूरत तक डीलक्स ट्रेन से एक सिख के रूप में यात्रा किया। मैंने उन्हें सलाह दी कि ज्यादा बात न करें, क्योंकि ज्यादा बोलने से उनका असली रूप उजागर हो सकता था। क्योंकि उनको पंजाबी बोलनी उतनी नहीं आती थी। वह शांति से यात्रा करते रहे और हम पहचाने जाने से बच गए।”
राजपाल आगे कहते है, “मोदी जी का धैर्य और उस कठिन समय में उनका दृढ संकल्प अद्वितीय था। वह देश के लिए किसी भी बलिदान के लिए तैयार थे। मैंने तब ही उनके नेतृत्व क्षमता को महसूस कर लिया था। दबाव में आकर स्थिति को समझने और रणनीतिक रूप से काम करने की उनकी क्षमता उन्हें दसूरों से अलग करती थी।”
–आईएएनएस
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