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Home Today's Special News

आरक्षण बढ़ाने के लिए जातिगत जनगणना बनेगी मजबूत आधार : डीएमके

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February 12, 2023
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आरक्षण बढ़ाने के लिए जातिगत जनगणना बनेगी मजबूत आधार :  डीएमके
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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

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डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

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विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 12 फरवरी (आईएएनएस)। सत्तारूढ़ डीएमके राज्य में विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए तमिलनाडु में जातीय जनगणना के पक्ष में है। तमिलनाडु सरकार ने एक नीति नोट में कहा है कि सरकार शैक्षणिक संस्थानों में 69 प्रतिशत कोटा लागू करने और राज्य में सरकारी सेवा में नियुक्तियों के लिए भी प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन पहले ही जातिवार जनगणना की मांग कर चुके हैं।

विपक्षी एआईएडीएमके ने अपने पिछले कार्यकाल में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा के संग्रह के लिए एक आयोग का गठन किया था और मद्रास उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. कुलशेखरन को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अन्नाद्रमुक की सहयोगी पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) की मांग के बाद आयोग का गठन किया गया था।

डीएमके सरकार भी जाति आधारित जनगणना के खिलाफ नहीं है और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एम.के. स्टालिन, स्वर्गीय एम. करुणानिधि ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित जनगणना आवश्यक है।

उन्होंने केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि वह स्वयं एक जाति आधारित जनगणना कराए।

जो एम. करुणानिधि की बेटी डीएमके की उप सचिव व संसद सदस्य कनिमोझी करुणानिधि और एम.के. स्टालिन ने जाति आधारित जनगणना की मांग की है और कहा है कि लोग जाति आधारित रचनाओं के बारे में जानने के लिए एक दशक और इंतजार नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था कि आंकड़ों के बिना समाज में कोई फर्क नहीं किया जा सकता। डीएमके ने वर्षों से जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है, उसे लगता है कि हाशिए के समुदायों का कल्याण जाति आधारित रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है।

डीएमके और अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते हैं, ताकि वे विभिन्न समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को सही ठहरा सकें। डीएमके और कनिमोझी सहित इसके नेता इस जनगणना के पक्ष में इसलिए भी हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि शक्तिशाली वन्नियार समुदाय की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) इस मुद्दे पर सुर्खियां बटोर सकती है।

केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि जाति आधारित जनगणना संभव नहीं है। डीएमके और एआईडीएमके जाति-आधारित जनगणना के समर्थक हैं, लेकिन सेमिनारों में बोलने और मुख्यमंत्री व अन्य नेताओं के कभी-कभी बयानों को छोड़कर, इस मुद्दे को मुखर रूप से नहीं उठाया गया है।

डीएमके का मत है कि यदि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाए तो पार्टी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ने में सक्षम होगी।

नाम न बताने की शर्त पर डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, जब ओबीसी की वास्तविक संख्या ज्ञात हो जाएगी, तब हम आरक्षण बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।

डीएमके जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही है, लेकिन पार्टी ने एआईएडीएमके सरकार द्वारा नियुक्त ए. कुलशेखरन आयोग की सेवाओं को बहाल नहीं किया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार जातिगत जनगणना नहीं करा सकती है और इसे सामान्य जनगणना के साथ किया जाना चाहिए।

डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह केंद्र सरकार से पूरी आबादी के लिए जातिगत जनगणना कराने का आग्रह करेगी।

पार्टी ने यह भी कहा है कि वह आईआईटी और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ-साथ शिक्षकों की नियुक्ति में भी पिछड़े समुदाय के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर जोर देगी।

डीएमके नेता सार्वजनिक रूप से और संसद में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव डालते हैं, लेकिन पार्टी इसे एक एजेंडे के रूप में आगे नहीं बढ़ा रही है और भारत सरकार द्वारा की जाने वाली जनगणना के दौरान भी इसकी मांग करने में उदासीन रही है।

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