नई दिल्ली, 9 अप्रैल (आईएएनएस)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को बैंक और एनबीएफसी (नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी) के को-लेंडिंग के दायरे के विस्तार करने का ऐलान किया है।
फिलहाल, बैंक और एनबीएफसी प्रायोरिटी सेक्टर में ही को-लेंडिंग कर सकते हैं। प्रायोरिटी सेक्टर में कृषि, सूक्ष्म उद्यम और कमजोर वर्ग के लोगों को शामिल किया जाता है।
आरबीआई अब को-लेंडिंग के एक अधिक समावेशी ढांचा प्रस्तुत करने की योजना बना रहा है जिसमें सभी विनियमित संस्थाएं और सभी प्रकार के लोन को शामिल किया जाएगा।
आरबीआई के बयान में कहा गया कि को-लेंडिंग पर मौजूदा दिशा-निर्देश केवल प्रायोरिटी सेक्टर के लोन के लिए बैंकों और एनबीएफसी की व्यवस्थाओं पर लागू होते हैं। क्रेडिट फ्लो को बढ़ाने की को-लेंडिंग की क्षमता को देखते हुए, इसके दायरे का विस्तार करने और विनियमित संस्थाओं के बीच सभी प्रकार की को-लेंडिंग व्यवस्थाओं के लिए एक सामान्य नियामक ढांचा जारी करने का निर्णय लिया गया है। मसौदे को दिशा-निर्देश सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए जारी किया जा रहा है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस तरह की लेंडिंग क्षमताओं का लाभ उठाने के लिए, प्रस्ताव में को-लेंडिंग को सभी विनियमित संस्थाओं और सभी प्रकार के लोन तक विस्तार करने का फैसला किया गया है।
को-लेंडिंग एक आधुनिक व्यवस्था है। इसमें दो संस्थाओं द्वारा मिलकर लोन दिया जाता है। इसमें एक प्राइमरी लेंडर होता है, जो कि मुख्यत: बैंक होता है और दूसरा बैंक, एनबीएफसी या फिनटेक कंपनी हो सकती है। दिए गए लोन में अपनी हिस्सेदारी के मुताबिक, दोनों कंपनियां वित्तीय भार उठाती हैं और संभावित रिटर्न कमाती हैं।
आरबीआई ने सभी विनियमित संस्थाओं के लिए गैर-निधि आधारित (एनएफबी) सुविधाओं जैसे गारंटी, क्रेडिट लेटर, सह-स्वीकृति आदि को कवर करने वाले दिशानिर्देशों को सुसंगत और समेकित करने का भी निर्णय लिया है, क्योंकि वे व्यापार लेनदेन सहित निर्बाध व्यावसायिक लेनदेन को सक्षम करने के अलावा प्रभावी ऋण मध्यस्थता को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
–आईएएनएस
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