नोएडा, 14 मई (आईएएनएस)। साइबर अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है। कोई एक खास जिला, राज्य नहीं, बल्कि पूरे देश के लगभग हर राज्य, हर जिले और हर शहर में इस अपराध ने अपने पैर पसार लिए हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में और खास तौर पर हाईटेक शहर दिल्ली एनसीआर में ये मामले और तेजी से बढ़ रहे हैं।
इस बढ़ते साइबर अपराध पर इस बार आईएएनस से खास बातचीत की है अशोक कुमार ने जो कि उत्तराखंड कैडर के 1989 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक के रूप में कार्यरत हैं। साथ ही उन्होंने साइबर एनकाउंटर जैसी किताब लिख कर यह बताया है कि किस तरीके से यह साइबर अपराध लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है।
साइबर क्राइम की वारदातों और उनके खुलासों पर आधारित यह पुस्तक साइबर एनकाउंटर्स पाठकों को नए रास्ते दिखाती है। डीजीपी अशोक कुमार के साथ सह लेखक ओपी मनोच ने इस किताब के माध्यम से साइबर फ्रॉड से कैसे बचा जाए, इस पर प्रकाश डाला है।
सवाल – बीते कुछ सालों से साइबर क्राइम लगातार क्यों बढ़ता जा रहा है?
जवाब – साइबर क्राइम बीते कई सालों से तेजी के साथ बढ़ रहा है। इसके दो तीन कारण हैं। यह नया क्राइम है, लाइफ ऑनलाइन हुई तो यह क्राइम भी तेजी से ऑनलाइन हो गया। क्रिमिनल्स के लिए यह काफी आसान हो गया कि एक ही जगह बैठे वह एक साथ कई लोगों के साथ क्राइम कर रहे हैं।
उन्हें फिजिकल प्रेजेंस की जरूरत नहीं है। न ही किसी तरीके की कोई रेकी करनी है। बस अपना जाल फेंकना है और लोग उसमें फंस जाएंगे। यहां तो अपराधी हजारों मील दूर बैठा है। चाहे वह जामताड़ा में हो, नूंह में हो, अफ्रीका में हो या कहीं भी हो। हजारों मील दूर बैठकर क्राइम हो सकता है फिजिकल प्रेजेंस की जरूरत नहीं। इसलिए पकड़े जाने का खतरा भी कम रहता है।
डार्क नेट से डाटा खरीद कर लोगों के मोबाइल नंबर पर फिशिंग मैसेजेस और ऐप के बारे में लिंक भेज दिया और लोग उसमें खुद ब खुद फंसते जाते हैं। पहले कुछ अपराधी थे अब तो पूरा का पूरा गांव इस काम में लग गया है।
सवाल – दिल्ली एनसीआर में साइबर अपराध के मामले बहुत बढ़े हैं। टेक्नो सेवी और पढ़े लिखे लोग इसमें कैसे फंस रहे हैं?
जवाब – यह अपराध पढ़े लिखे, अनपढ़, टेक्नो सेवी, बच्चे, बुजुर्ग और बड़ों सभी के साथ हो रहा है। अपराधी रोज नए नए तरीके इजाद कर रहे हैं। बात यही नहीं है कि यह मामले दिल्ली एनसीआर में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर 2022 के फिगर की बात की जाए तो 10 लाख से ज्यादा कंप्लेंट मिली है जिममें मामले दर्ज किए गए हैं।
क्राइम करने वालों और क्राइम का वॉल्यूम इतना ज्यादा है कि इन्हें पकड़ पाना काफी मुश्किल हो गया है। उदाहरण के तौर पर अगर चोरों या डकैतों का कोई गैंग शहर में आता है तो उसे पकड़ना आसान होता है। लेकिन छुप कर सैकड़ों, हजारों और लाखों की संख्या में यह साइबर अपराधी कहां बैठकर किस तरीके से वारदात को अंजाम देंगे, यह समझ पाना काफी मुश्किल होता है।
अभी हाल ही में उत्तराखंड के एक मामले में मेवात से एक साइबर अपराधी को पकड़ा गया। जिस पर अकेले 200 से ज्यादा एफआईआर दर्ज है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके जैसे न जाने कितने साइबर अपराधी इसके इर्द-गिर्द मौजूद होंगे जिन पर सैकड़ों एफआईआर दर्ज होंगी।
सवाल – एक नया साइबर अपराध देखने को मिला है, जिसमें लगातार व्हाट्सऐप कॉल और वीडियो कॉल लोगों को मिल रही हैं यह किस तरीके का अपराध है?
जवाब – व्हाट्सऐप पर वीडियो कॉल कर लोगों को ठगने का नया साइबर अपराध सेक्सटॉर्शन कहलाता है – सेक्स की आड़ में किया गया एक्सटॉर्शन। जब आपको यह कॉल करते हैं तो दूसरी तरफ कोई न्यूड लड़की होगी, जो आपका वीडियो बना लेगी। उसके बाद यह लोग आपको धमकाएंगे कि पुलिसवाले आपको पकड़ लेंगे। इनमें से कुछ पुलिसवाले बन कर भी आपसे बात करेंगे और आपके साथ ठगी करेंगे। यह सारे अपराध सेक्सटॉर्शन कहलाते हैं।
सवाल – सबसे ज्यादा साइबर अपराध देश के किस हिस्से में हो रहा है?
जवाब – साइबर अपराध देशभर के सभी हिस्सों में कई गुना बढ़ गया है। यह कह पाना काफी मुश्किल है कि किस हिस्से में सबसे ज्यादा है, क्योंकि साइबर अपराधी कहीं भी बैठकर किसी को भी अपना निशाना बना सकते हैं। हां, यह कहना जरूर आसान होगा कि इसका गढ़ कहां हैं। जामताड़ा इसका सबसे पहला गढ़ है, उसके बाद अब उन्होंने नूंह ने यह जगह ले ली है। यह मेवात बेल्ट अब काफी बड़ी हो गई है।
सवाल – साइबर अपराध कितने प्रकार के होते हैं?
जवाब – वैसे तो उसके नए नए पैटर्न और तरीके रोजाना इजाद हो रहे हैं लेकिन मैंने अपनी किताब साइबर एनकाउंटर्स में साइबर अपराध के 12 पैटर्न लिए हैं। इसमें हनी ट्रैप, एटीएम फ्रॉड, फिशिंग, नौकरी फ्रॉड, लोन फ्रॉड, केबीसी फ्रॉड और धमकी देकर पैसे लेना भी शामिल है।
सवाल – आने वाले समय में इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाना पड़ेगा?
जवाब – सबसे पहले पुलिस को राष्ट्रीय स्तर पर कोऑर्डिनेटेड होना पड़ेगा। जिसकी शुरआत एमएचए ने कर दी है। आईसी 4 बनाया गया है, इंटीग्रेटेड साइबर क्राइम कॉर्डिनेशन सेंटर। इसके लिए कोआर्डिनेशन सबसे जरूरी चीज है। पहले तो ऐसे मामले दर्ज ही नहीं हो पाते थे। धीरे-धीरे इस कोआर्डिनेशन की शुरूआत देखने को मिल रही है लेकिन अभी बहुत काम करना बाकी है।
बैंकिंग सेक्टर को इन मामलों को रोकने के लिए काफी टाइट होना पड़ेगा। ऐसे ही किसी का बैंक अकाउंट खोल देना, रोकना पड़ेगा। किसी की केवाईसी पर किसी का भी बैंक अकाउंट खोलना बंद करना पड़ेगा। जब तक व्यक्ति की पूरी डिटेल बैंक को ना मिल जाए, बिना उसके बैंक अकाउंट न खोला जाए।
सिम कार्ड बेचने वालों और सिम कार्ड फर्जी खरीदने वालों पर भी लगाम लगानी होगी। एक-एक व्यक्ति के पास सैकड़ों सिम कार्ड मिल जाते हैं जिनका इस्तेमाल ऐसे गलत कामों में किया जाता है।
सवाल – आम लोगों के लिए क्या सुझाव है?
जवाब – बहुत सारे सुझाव हैं। जब आपने कोई लॉटरी खेली ही नहीं तो आप पैसे कैसे जीत गए? जब आप ने कोई इन्वेस्टमेंट किया ही नहीं तो उसका एक बड़ा अमाउंट आपको कैसे मिलने वाला है? जब भी इस तरीके के फोन आते हैं तो आप इंक्वायरी करें, उस मामले को समझें, पूछें और उसके बाद ही कोई काम करें।
ऐसे ही जाल में लोग क्यों फंस जा रहे हैं। किसी का भी फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट आ गया। नाम कुछ और फोटो कुछ और। बिना सोचे समझे आपने एक्सेप्ट कर लिया। यह सारे कारण बनते हैं आपके साथ साइबर अपराध होने के। पहले एग्जामिन करें कि वह रियल अकाउंट है या नहीं। जो फेक अकाउंट होता है उसके नंबर ऑफ फ्रेंड्स और नंबर ऑफ पोस्ट बहुत कम होते हैं।
क्योंकि वह 2 से 3 हफ्ते के लिए ही होता है। ताकि कुछ लोगों के साथ फ्रॉड किया जाए और फिर उसे बंद कर दिया जाए। यह सब आप जरूर देख लें। यह जो ओटीपी और क्यूआर कोड जो आपको भेजा जाता है उससे पैसा आता नहीं सिर्फ जाता ही है।
सवाल – हर राज्य और हर शहर में एक साइबर थाना होना कितना जरूरी है?
जवाब – हर राज्य में और हर शहर में साइबर थाना अलग से जरूर होना चाहिए। क्योंकि नॉर्मल थानों में ऐसे केस को ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पाती है। और नॉर्मल थानों में ऐसे मामलों को हैंडल करने के लिए ट्रेंड लोग भी मौजूद नहीं होते हैं। इसलिए अगर साइबर थाना अलग से होगा और उसमें ट्रेंड पुलिस अधिकारी होंगे तो फिर ऐसे मामलों को ट्रैक करना और अपराधियों को पकड़ पाना आसान होगा।
–आईएएनएस
पीकेटी/एसकेपी