देहरादून, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तराखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने विधानसभा से कर्मचारियों की बर्खास्तगी प्रकरण पर खुलकर बोलते हुए आरोप लगाया कि इसमें दोहरा चरित्र उजागर हुआ है और समानता के अधिकार की धज्जियां उड़ी हैं। उन्होंने मांग उठा दी कि अगर नियुक्तियां अवैध थीं, तो नियुक्ति कर्ताओं के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई हो। उन्होंने कहा कि समान प्रक्रिया के तहत वर्ष 2001 से 2016 तक की नियुक्तियों को भी निरस्त किया जाए या निकाले गए कर्मचारियों की बहाली की जाए।
कुंजवाल ने कहा कि विधानसभा में कार्यरत वर्ष 2016 के बाद नियुक्त चुनिंदा कर्मचारियों को निकाला जाना एक साजिश है। इस साजिश से सरकार ने एक ओर अपने चहेतों को बचाने का प्रयास किया है। वहीं दूसरी ओर भारतीय संविधान में निहित समानता के अधिकार अनुच्छेद-16 का स्पष्ट उल्लंघन किया है।
उन्होंने कहा कि समानता का अधिकार अनुच्छेद-16 स्पष्ट करता है कि राज्य के अधीन किसी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से सम्बन्धित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। ऐसे में वर्ष 2001 से 2016 तक की नियुक्तियों को वैध और वर्ष 2016 के बाद की नियुक्तियों को अवैध ठहराकर सरकार ने समानता के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा दी हैं।
कुंजवाल ने कहा है कि विधानसभा में वर्ष 2016 के पश्चात नियुक्त कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर वाहवाही लूटने वाली स्पीकर ऋतु खंडूड़ी स्वयं सवालों के घेरे में हैं। उन्होंने कहा कि निजी कारणों से विधानसभा में वर्ष 2016 से पूर्व बैकडोर से भर्ती हुए लोगों को बचाने का कार्य किया है। वर्ष 2016 से पहले की नियुक्तियों में कार्यवाही नहीं होना सीधे तौर पर विधानसभा अध्यक्ष की भाई भतीजावाद की राजनीति कोसिद्ध करता है, क्योंकि एक ओर वह हाईकोर्ट में खुद मान चुकी हैं कि वर्ष 2001 से लेकर 2022 तक की सभी भर्ती अवैध हैं।
विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 2016 से पहले विधानसभा में भर्ती कई कर्मचारी ऐसे हैं, जिनकी विधानसभा में नियुक्ति बीसी खंडूड़ी के मुख्यमंत्री रहते हुए हुईं। इनमें तत्कालीन सीएम बीसी खंडूड़ी के पर्यटन सलाहकार की बेटी सहित कई हाई प्रोफाइल लोगों के परिजन शामिल हैं। कुंजवाल ने कहा कि इन्हीं लोगों को बचाने के लिए स्पीकर ने भेदभाव भरी कार्यवाही करने से परहेज नहीं किया।
–आईएएनएस
स्मिता/एसकेपी