नई दिल्ली, 27 सितंबर (आईएएनएस)। तमिलनाडु सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी कि राज्य के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली जनहित याचिकाएं (पीआईएल) वास्तव में “प्रचार हित याचिका” (पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन) की प्रकृति की हैं।
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ दिल्ली के एक वकील द्वारा दायर नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सनातन धर्म के खिलाफ की गई “अपमानजनक” टिप्पणियों के लिए दंडात्मक कार्रवाई शुरू करने की मांग की गई थी।
शुरुआत में, तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वकील अमित आनंद तिवारी ने कहा कि ”ये ‘प्रचार हित याचिका’ की प्रकृति में ‘जनहित याचिका’ हैं”। नोटिस जारी होने के बाद वे जिस तरह का प्रचार करते हैं, उस पर आप विश्वास नहीं करेंगे।
तिवारी ने आगे बताया कि देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में पहले से ही 40 याचिकाएं लंबित हैं और आग्रह किया कि किसी और याचिका पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
पीठ ने कहा, ”हम नोटिस जारी नहीं करेंगे बल्कि इसे दूसरे नोटिस के साथ टैग करेंगे।”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील राज किशोर चौधरी ने दावा किया कि राज्य मंत्री ने “नरसंहार के आह्वान” किए और उदयनिधि स्टालिन और द्रमुक नेता ए. राजा द्वारा की गई टिप्पणियां निर्विवाद रूप से देश की एक बड़ी आबादी के खिलाफ “घृणास्पद भाषण” के समान हैं जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परिकल्पना करने वाले भारतीय संविधान के मूल पर हमला कर रही है।
पिछले सप्ताह, शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालीन के बेटे उदयनिधि के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर स्टालिन जूनियर, तमिलनाडु पुलिस, ‘सनातन धर्म उन्मूलन सम्मेलन’ के आयोजक और अन्य को नोटिस जारी किया था।
–आईएएनएस
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