नई दिल्ली, 2 मार्च (आईएएनएस)। फिल्म आई थी गोलियों की रासलीला। बड़ी चली, हट कर टाइटल था। राजस्थान के एक गांव में भी ऐसा ही कुछ हट कर होता है होली पर! यहां रंगों की नहीं बारूद की होली खेली जाती है। रात भर तोप गरजती है, आग उगलती है और लोग झूमने लगते हैं।
वीरों की भूमि से जुड़ी कहानी भी दिलचस्प है। यह परंपरा राजस्थान के उदयपुर जिले के मेनार गांव में करीब 500 साल से चली आ रही है। होली के अगले दिन जमरा बीज पर इसे गोली-बारूदों के शोर के बीच मनाया जाता है। इसकी कहानी शौर्य और हार न मानने की जिद की कहानी है। मेनारिया ब्राह्मणों के मुगलों के सामने डटकर खड़े रहने की कहानी है।
कहा जाता है कि मेवाड़ में महाराणा अमर सिंह के शासनकाल में मेनार गांव के पास मुगल सेनाओं की एक चौकी थी। गांव वाले परेशान थे। पता चला कि मुगल सेना हमला करने की फिराक में है। फिर क्या था, ग्रामीणों को भनक लगी और उन्होंने मुगल सेना को रणनीति बना खदेड़ दिया। मेनारिया समाज की जीत हुई। बस तभी से उस जीत की खुशी का गांव जश्न मनाता है।
देर शाम पूर्व रजवाड़ों के सैनिकों की पोशाक धोती-कुर्ता और कसुमल पाग से सजे-धजे ग्रामीण अपने-अपने घरों से निकलते हैं। अलग-अलग रास्तों से ललकारते हुए तलवार लहराते और बंदूक से गोलियां दागते हुए गांव के ओंकारेश्वर चौक पर पहुंचते हैं। आतिशबाजी होती है। उसके बाद वहां मौजूद लोग अबीर-गुलाल से रणबांकुरों का स्वागत करते हैं। देर रात तक बम गोले छोड़े जाते हैं। ग्रामीण दो टुकड़ों में बंटकर आमने-सामने डटकर बम गोले छोड़ते हैं।
अजीब और आश्चर्य में डालने वाली बात यह होती है कि इस दौरान सिर पर कलश रखकर वीर रस के गीत गाती महिलाएं निर्भीक होकर आगे बढ़ती हैं।
–आईएएनएस
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