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Home ताज़ा समाचार

उपचुनाव के नतीजे भाजपा को निकाय चुनाव में रणनीति बदलने के दे रहे संकेत

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December 9, 2022
in ताज़ा समाचार
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उपचुनाव के नतीजे भाजपा को निकाय चुनाव में रणनीति बदलने के दे रहे संकेत
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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

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राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

–आईएएनएस

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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लखनऊ, 9 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधानसभा सीट पर मिली जीत का असर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव पर पड़ेगा। अब निश्चित तौर पर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।

जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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जानकारों की मानें तो मैनपुरी की लोकसभा सीट पर डिंपल यादव को मिली जबरदस्त जीत और खतौली सीट को भाजपा से छीनने के बाद सपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। दो सीटों पर मिली जीत के बाद सपा कार्यकर्ताओं को बूस्टर मिला है। विधानसभा चुनाव 2022 के बाद आजमगढ़, रामपुर और गोला सीट पर सपा की लगातर हार से कार्यकर्ता निराश थे। लेकिन मैनपुरी और खतौली में मिली विजय उनमें उत्साह भरेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे भाजपा को नए समीकरण बनाने होंगे। जातीय गोलबंदी को और मजबूत करनी होगी। सोशल इंजीनियरिंग को नए सिरे से गढ़नी होगी। बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन और ढंग से करना होगा। क्योंकि पहली बार अपने सिंबल पर चुनाव लड़ रही सपा को इन दो सीटों का फायदा मिल सकता है। मैनपुरी और खतौली की हार से भगवा खेमे में बड़ा झटका माना जा रहा है।

मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि गुजरात चुनाव में भाजपा भले ही बड़ी जीत दर्ज की हो। लेकिन यूपी के उपचुनाव के परिणाम उसके लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि अभी हाल में विधानसभा के बाद तीन उपचुनाव भाजपा जीत चुकी है। मैनपुरी और खतौली का चुनाव हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए कई सवाल खड़े करता है। अगर मैनपुरी में सहनूभूति थी तो खतौली में जातिगत समीकरण ठीक नहीं था। दलित वोट निर्णायक थे। वो गठबंधन के पाले में चले गए चंद्रशेखर की बात समझने में सफल हो गए। दलित, मुस्लिम, जाट और गुर्जर सभी को एकजुट कर रालोद ने बाजी पलट दी। भाजपा का मैंजमेंट इनके सामने फेल हो गया। अब निकाय चुनाव जीतने के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। सारे कील कांटे एक बार दुरुस्त करने होंगे। क्योंकि निकाय चुनाव में सपा इस बार अपने सिंबल से चुनाव लड़ने जा रही है।

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