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उपनिवेशवाद कभी नहीं रुकता

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February 19, 2023
in अंतरराष्ट्रीय
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उपनिवेशवाद कभी नहीं रुकता
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बीजिंग, 19 फरवरी (आईएएनएस)। 21 फरवरी, 1946 को भारतीय नौसेना ने मुंबई में ब्रिटिश उपनिवेशक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध किया। बाद में भारत ने इस दिन को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरोध की वर्षगांठ के रूप में मनाया। 21 फरवरी, 1948 को विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग और अंतर्राष्ट्रीय छात्र संघ द्वारा आयोजित दक्षिण पूर्व एशियाई युवा कांग्रेस ने औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ एक प्रदर्शन किया।

अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

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दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

–आईएएनएस

एसजीके

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बीजिंग, 19 फरवरी (आईएएनएस)। 21 फरवरी, 1946 को भारतीय नौसेना ने मुंबई में ब्रिटिश उपनिवेशक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध किया। बाद में भारत ने इस दिन को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरोध की वर्षगांठ के रूप में मनाया। 21 फरवरी, 1948 को विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग और अंतर्राष्ट्रीय छात्र संघ द्वारा आयोजित दक्षिण पूर्व एशियाई युवा कांग्रेस ने औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ एक प्रदर्शन किया।

अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

–आईएएनएस

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बीजिंग, 19 फरवरी (आईएएनएस)। 21 फरवरी, 1946 को भारतीय नौसेना ने मुंबई में ब्रिटिश उपनिवेशक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध किया। बाद में भारत ने इस दिन को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरोध की वर्षगांठ के रूप में मनाया। 21 फरवरी, 1948 को विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग और अंतर्राष्ट्रीय छात्र संघ द्वारा आयोजित दक्षिण पूर्व एशियाई युवा कांग्रेस ने औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ एक प्रदर्शन किया।

अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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बीजिंग, 19 फरवरी (आईएएनएस)। 21 फरवरी, 1946 को भारतीय नौसेना ने मुंबई में ब्रिटिश उपनिवेशक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध किया। बाद में भारत ने इस दिन को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरोध की वर्षगांठ के रूप में मनाया। 21 फरवरी, 1948 को विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग और अंतर्राष्ट्रीय छात्र संघ द्वारा आयोजित दक्षिण पूर्व एशियाई युवा कांग्रेस ने औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ एक प्रदर्शन किया।

अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

–आईएएनएस

एसजीके

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बीजिंग, 19 फरवरी (आईएएनएस)। 21 फरवरी, 1946 को भारतीय नौसेना ने मुंबई में ब्रिटिश उपनिवेशक शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध किया। बाद में भारत ने इस दिन को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरोध की वर्षगांठ के रूप में मनाया। 21 फरवरी, 1948 को विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग और अंतर्राष्ट्रीय छात्र संघ द्वारा आयोजित दक्षिण पूर्व एशियाई युवा कांग्रेस ने औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ एक प्रदर्शन किया।

अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

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इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

कुछ लोग कह सकते हैं कि अब यह बात करने का क्या मतलब है? क्या अभी भी उपनिवेशवाद है? मेरा मानना है कि आज की दुनिया में पहले की नग्न हिंसा और सत्ता वाला उपनिवेशवाद चला गया है, लेकिन पश्चिमी विकसित देश अधिक गुप्त, अप्रत्यक्ष नवउपनिवेशवाद के आक्रामकता साधनों को अपनाते हुए उन राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने वाले देशों को अपने नियंत्रण में लाते हैं, ताकि वे देश वस्तु बाजार, कच्चे माल का स्रोत और निवेश स्थान के रूप में काम करना जारी रख सकें और उन के धन का शोषण किया जा सके, इसलिए हमें हमेशा इतिहास के सबक को याद रखना चाहिए, और औपनिवेशिक शासन के काले दिनों की गलतियों को कभी नहीं दोहराना चाहिए।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

दुनियाभर के युवा हर साल इस दिन एक साथ इकट्ठा होते हैं और कई गतिविधियों को अंजाम देते हैं, साथ ही उपनिवेशवाद विरोधी शिक्षा का संचालन करते हैं, जिससे दुनिया भर के युवाओं की इतिहास शिक्षा, विश्व एकीकरण और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है, और वैश्विक शांति को बढ़ाने में सकारात्मकता मिलती है।

इसके बाद विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों ने चीन पर आक्रमण करने और उसे लूटने की श्रेणी में भाग लिया। 1856 से 1860 तक, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के आक्रमणकारियों ने अफीम युद्ध में जब्त किए गए अधिकारों और हितों का और विस्तार करने के लिए दूसरा अफीम युद्ध शुरू किया। दूसरे अफीम युद्ध, जापानी-छिंग राजवंश युद्ध(चीन-जापानी युद्ध 1894-1895), और चीन के खिलाफ आठ-शक्ति गठबंधन सेना के आक्रमण युद्ध के बाद, साम्राज्यवादी शक्तियों ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, सेना आदि क्षेत्रों में चीन को सख्ती से नियंत्रित, ब्लैकमेल, शासित और उत्पीड़ित किया, जिससे चीन की संप्रभुता पूरी तरह से खो गई। और चीन अंतत: अर्ध-औपनिवेशिक और अर्ध-सामंती समाज बन गया। लगभग उसी समय, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश युद्ध और उपनिवेशवाद के कहर से पीड़ित थे।

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अगस्त 1948 में विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की परिषद ने निर्णय लिया कि हर साल 21 फरवरी को औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाएगा और 1949 से विश्व लोकतांत्रिक युवा लीग की दूसरी कांग्रेस के बाद इस दिन को आधिकारिक तौर पर औपनिवेशिक विरोधी संघर्ष दिवस के रूप में नामित किया गया।

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