जबलपुर. बैंक में खाता खुलवाने के बाद साइबर ठगों को बेचने का सनसनीखेज मामला सामने आया है. एटीएस तथा स्टेट साइबर सेल की टीम ने इस गोरखधंधे में लिप्त 12 आरोपियों को अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष पेश किया. न्यायालय ने सभी आरोपियों को 14 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में भेजने के आदेश जारी किये है.
आरोपियों के द्वारा बैंक में बड़ी संख्या में बैंक खाते खुलवाए गये थे. इन खातों से करोड़ों रूपये का लेन-देन देश के विभिन्न राज्यों तथा विदेषों में किया गया गया था. विदेश में रूपये भेजे जाने को गंभीरता से लेते हुए एटीएस ने एक-एक एकाउंट और उसमें होने वाले लेनदेन की जांच प्रारंभ की. जिसके बाद यह बात सामने आई कि साइबर ठगों को बैंक खाते बेच दिये जाते है. जिसके बाद स्टेट साइबर सेल भोपाल में एफआईआर दर्ज कराई गई.
स्टेट साइबर सेल भोपाल की टीम ने अनवर हुसैन, सागिर अख्तर, अमित निगम, अनुराग कुशवाहा, स्नेह गर्ग, सुमित शेवानी, अमित कुशवाहा, शशांक अग्रवाल संदीप चतुर्वेदी, नितिन कुशवाहा और सागिर अख्तर सभी निवासी सतना सहित जबलपुर निवासी ऋतिक श्रीवास तथा मैहर निवासी मेदनी पाल चतुर्वेदी को गिरफ्तार कर बुधवार को न्यायालय में पेश किया. न्यायालय ने सभी आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भेजने के आदेश जारी किये है.
करोडो रूपये का लेन देन
जांच में यह बात सामने आई है कि बैंक खातों से करोड़ों रूपये का लेन-देन हुआ है. लेन-देन दिल्ली, गुडगांव, रायपुर, हरियाणा, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश से हुआ था. आरोपित के द्वारा साइवर ठगों को बैंक खाता बेचा जाता था. साइबर ठग बैंक खातों में डिजीटल अरेस्ट, साइबर धोखाधड़ी सहित साइबर से जुड़े अन्य अपराधों समेत हवाला की राषि का लेन-देन करते थे.
जबलपुर साइबर सेल को जानकारी नहीं
भोपाल से आई टीम के द्वारा पूरी कार्यवाही की गयी. जबलपुर साइबर सेल को इस संबंध में कोई जानकारी तक नहीं थी. भोपाल की टीम द्वारा पूरे मामले का खुलासा किये जाने के बाद जबलपुर साइबर सेल की टीम अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश करती रही.
भोले भाले लोगों को फंसाते थे
आरोपी की सदस्य परिचित व गांव के भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसाते थे. उनका आधार कार्ड और पैन कार्ड लेने के बाद फोटो बदलकर बैंक खाते खुलवाए थे. अधिकांश खाते प्राइवेट बैंक में खुलवाये गये है. जिस व्यक्ति की फोटो लगाई जाती थी तथा जिसके नाम पर फर्जी खाता खोला जाता था उन्हें दस से पचास हजार रूपये दिये जाते थे.