नई दिल्ली, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। भारतीय सांकेतिक भाषा (आईएसएल) के लिए शुक्रवार को पीएम-ई विद्या के तहत डीटीएच चैनल नंबर 31 लॉन्च किया गया। इस डीटीएच चैनल से श्रवण-बाधित छात्र अपनी शिक्षा में सहयोग हासिल कर सकेंगे। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रारंभ किया गया यह डीटीएच चैनल करियर संबंधी विषयों में भी श्रवण-बाधित छात्रों का मार्गदर्शन करेगा।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल 2.68 करोड़ व्यक्तियों को दिव्यांग बताया गया है। इनमें से 19 प्रतिशत को सुनने की समस्या है। वर्ष 2023 में डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में लगभग 63 मिलियन लोग सुनने की समस्या से पीड़ित हैं।
श्रवण बाधित लोगों की शैक्षणिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने डीटीएच पर चैनल 31 लॉन्च किया है। यह श्रवण बाधित छात्रों, विशेष शिक्षकों, दुभाषियों और संबंधित संगठनों के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा (आईएसएल) का प्रशिक्षण देगा।
इस चैनल का शुभारंभ करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ (एनईपी) ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (सीडब्ल्यूएसएन) की शिक्षा को प्राथमिकता दी है। यह एक अधिक समावेशी शिक्षा प्रणाली की ओर बदलाव को दर्शाता है। संचार के लिए ध्वनि ही एकमात्र माध्यम नहीं है, सांकेतिक भाषा जैसे वैकल्पिक रूप भी सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उन्होंने भारत में श्रवण-बाधित आबादी का समर्थन करने के लिए अधिक से अधिक व्यक्तियों को आईएसएल सीखने की कल्पना करते हुए आईएसएल को वैश्विक मानकों के अनुसार विकसित करने और इसे व्यापक रूप से अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इससे रोजगार के अवसर पैदा करने में भी मदद मिलेगी।
प्रधान ने नृत्य और नाटक जैसी सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में आईएसएल के प्रभाव की ओर भी इशारा किया और दिव्यांग समुदाय के भीतर अपार संभावनाओं को उजागर करने के लिए असाधारण व्यक्तियों के उदाहरण दिए। उन्होंने चैनल 31 को एक पुल कहा। उन्होंने हितधारकों से चैनल 31 को लोकप्रिय बनाने और दुनियाभर में भारतीय सांकेतिक भाषा के प्रवेश द्वार के रूप में पूरे भारत में इसकी पहुंच सुनिश्चित करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक मानक स्थापित करता है। यह पहल संवैधानिक अधिकारों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है, जो सभी नागरिकों के लिए शिक्षा और संसाधनों तक समान पहुंच सुनिश्चित करती है।
–आईएएनएस
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