नई दिल्ली, 29 मार्च (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली सरकार की उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) द्वारा एमसीडी में मनोनीत पार्षद यानी एल्डरमैन की नियुक्ति को चुनौती दी गई थी।
दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अभिषेक मनु सिंघवी ने अधिवक्ता शादन फरासत के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दलीलें पेश की।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली एलजी के कार्यालय को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई 10 अप्रैल को निर्धारित की। सरकार की याचिका में कहा गया, 1991 में अनुच्छेद 239ए ए के प्रभाव में आने के बाद से यह पहली बार है कि निर्वाचित सरकार को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए उपराज्यपाल द्वारा इस तरह का नामांकन किया गया है, जिससे एक अनिर्वाचित कार्यालय को एक ऐसी शक्ति का अधिकार मिल गया है जो विधिवत निर्वाचित सरकार से संबंधित है।
दिल्ली सरकार ने 3 और 4 जनवरी, 2023 के आदेशों और परिणामी राजपत्र अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग की, जिसके तहत एलजी ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में 10 नामित सदस्यों को अपनी पहल पर नियुक्त किया, न कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर।
याचिका में तर्क दिया गया है कि विचाराधीन नामांकन दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 (डीएमसी अधिनियम) की धारा 3(3)(बी)(1) के तहत किए गए हैं, जो प्रदान करता है कि एमसीडी में निर्वाचित पार्षदों के अलावा, 25 वर्ष से कम आयु के दस व्यक्ति और जिन्हें नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव है, को प्रशासक द्वारा नामित किया जाना चाहिए।
इसमें आगे तर्क दिया कि न तो धारा और न ही कानून का कोई अन्य प्रावधान कहीं भी कहता है कि इस तरह का नामांकन प्रशासक द्वारा अपने विवेक से किया जाना है।
दिल्ली सरकार ने कहा कि यह पिछले 50 सालों से संवैधानिक कानून की एक स्थापित स्थिति है कि राज्य के नाममात्र और अनिर्वाचित प्रमुख को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग केवल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के तहत किया जाना है। उन्होंने कहा, वर्तमान मामले में डीएमसी अधिनियम के तहत या तो संविधान या वैधानिक योजना के तहत इस तरह की स्पष्ट आवश्यकता का पूरी तरह से अभाव है और इस तरह उपराज्यपाल द्वारा किए गए नामांकन असंवैधानिक और अवैध हैं।
याचिका में कहा गया, उनके (एलजी) कार्रवाई के केवल दो रास्ते खुले थे या तो निर्वाचित सरकार द्वारा एमसीडी में नामांकन के लिए प्रस्तावित नामों को विधिवत रूप से स्वीकार करना या प्रस्ताव से अलग होना। निर्वाचित सरकार को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए अपनी पहल पर नामांकन करना उनके लिए बिल्कुल भी खुला नहीं था।
–आईएएनएस
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