कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
एससीएच/सीबीटी
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
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आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
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आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
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आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
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आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
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आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
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आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
एससीएच/सीबीटी
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”
–आईएएनएस
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कर्नाटक, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (ओएनओई) विधेयक पेश करने पर तीखा हमला किया और दावा किया कि मौजूदा सरकार को देश के ऐतिहासिक संदर्भ की बहुत कम समझ है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक पेश किया।
आईएएनएस से बात करते हुए मोइली ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस सरकार को हमारे देश के इतिहास की पूरी समझ नहीं है। वे यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक एक नई अवधारणा है, कुछ क्रांतिकारी है। लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका विरोध नहीं किया। हालांकि, यह किसी खास राजनीतिक विचारधारा के कारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कारणों से किया गया था।”
मोइली ने बताया कि भारत में चुनाव अक्सर अप्रत्याशित परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, जैसे विधानसभा या संसद का समय से पहले भंग हो जाना। उन्होंने कहा, “कई बार विधानसभाएं अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती हैं या संसद के चुनाव तय समय से पहले हो जाते हैं। इन ऐतिहासिक घटनाओं ने हमारे चुनावों के संचालन को आकार दिया है। मौजूदा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इन घटनाओं का फायदा उठाने के लिए उत्सुक है।”
पूर्व कानून मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का इस विचार को आगे बढ़ाना राष्ट्रीय कल्याण के बारे में नहीं है, बल्कि उनकी अपनी छवि को बढ़ाने के बारे में है।
मोइली ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि बार-बार हो रहे चुनाव को कम कर वे पैसे बचाएंगे और ‘चुनावों की बहुलता’ को रोकेंगे। लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है; यह केवल एक ऐतिहासिक वास्तविकता है। यह कहना कि दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पार्टी के लाभ के लिए चुनावों को विभाजित करना चाहते थे, गलत है। जो कुछ भी किया गया वह राष्ट्रीय हित के लिए था, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।”
उन्होंने कहा, “अगर मोदी सोचते हैं कि सिर्फ़ एक चुनाव होने से उनकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी, तो यह केवल एक दिन का सपना है। इस विचार पर विपक्षी दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी, क्योंकि चुनाव सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टी के लिए नहीं होते, वे पूरे देश के लिए होते हैं। यही असली मुद्दा है।”