टोक्यो, 26 अप्रैल (आईएएनएस)। वर्ल्ड फेडरेशन की जापानी संसदीय समिति के निमंत्रण पर ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) सी. राज कुमार ने जापानी संसद (नेशनल डायट) के 20 से अधिक प्रतिष्ठित सदस्यों के एक समूह को संबोधित किया, जिसमें जापान सरकार के शिक्षा, संस्कृति, खेल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री मासाहितो मोरियामा भी शामिल थे।
यह वास्तव में गौर करने लायक है कि प्रोफेसर राज कुमार पहले भारतीय कुलपति हैं जिन्हें जापानी संसद में जापान सरकार के प्रतिष्ठित सांसदों और सरकारी अधिकारियों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया।
वर्ल्ड फेडरेशन की जापानी संसदीय समिति ने प्रोफेसर कुमार को भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति, द्विपक्षीय संबंधों, विकास एजेंडा और वैश्विक शासन से संबंधित मुद्दों पर अपने विचार साझा करने के लिए आमंत्रित किया। समिति में जापानी संसद की प्रतिनिधि सभा (निचले सदन) के कुछ सबसे प्रतिष्ठित सदस्य और अन्य सरकारी अधिकारी शामिल थे। ये अधिकारी थे – विश्व महासंघ की जापानी संसदीय समिति के अध्यक्ष मित्सुओ ओहाशी; जापानी संसदीय समिति विश्व महासंघ के अवर महासचिव प्रोफेसर मासाकुनी तानिमोतो; जापान के विदेश राज्य मंत्री कियोशी ओदावारा; विदेश मंत्रालय में डिप्टी एसिस्टेंट मिनिस्टर मकोतो हयाशी; एशिया-प्रशांत के लिए फ्रेंड्स ऑफ यूनाइटेड नेशन्स के प्रतिनिधि ताकाहिरो कनामोरी; प्रतिनिधि सभा में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य हिरोबुमी निकी; जापान के शिक्षा, संस्कृति, खेल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री मासाहितो मोरियामा; प्रतिनिधि सभा के सदस्य तथा सदन के पूर्व वाइस स्पीकर सेशिरो ईटो; हाउस ऑफ काउंसिलर्स (ऊपरी सदन) में द कॉन्स्टीट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य मोटोको मिज़ुनो; प्रतिनिधि सभा में डेमोक्रेटिक पार्टी फॉर द पीपल के सदस्य सातोशी असानो; हाउस ऑफ काउंसिलर्स के सदस्य केंटा अओशिमा तथा अयाका शिओमुरा; डिप्टी एसिस्टेंट मिनिस्टर और एशियाई एवं ओशियान ब्यूरो तथा दक्षिणपूर्व एवं दक्षिण पश्चिम एशियाई मामलों के विभाग में आसियान राजदूत मकोतो हयाशी; और जपान एडवाइजरी कमिटि ऑन ग्लोबल गवर्नेंस के अध्यक्ष और तिमोर-लेस्ते में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पूर्व विशेष प्रतिनिधि सुकेहिरो हसेगावा।
कुमार ने भारत-जापान संबंधों पर भाषण देते हुए इसे सामूहिक प्रगति और समृद्धि की आधारशिला बताया। उन्होंने कहा, “भारत-जापान संबंध निस्संदेह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण है।”
कुमार ने भारत और जापान के बीच द्विपक्षीय संबंधों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक आयामों को समाहित करते हुए पांच प्रमुख बिंदुओं को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, “भारत और जापान के बीच गहरे संबंध हैं, जो साझा सभ्यतागत मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत से उपजे हैं, जिनमें दोनों देशों में एक धर्म और दर्शन के रूप में बौद्ध धर्म का गहन प्रभाव शामिल है।”
उन्होंने प्रतिष्ठित सुदूर पूर्व के लिए अंतर्राष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण के पूर्व न्यायाधीश और भारतीय न्यायविद न्यायमूर्ति राधा बिनोद पाल के दृढ़ विश्वास और बौद्धिक अखंडता के उत्कृष्ट साहस को याद किया, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्याय “विजेता का न्याय” बनकर न रह जाए और टोक्यो ट्रायल्स में समानता, न्याय और निष्पक्षता में योगदान दिया।
वह सुदूर पूर्व के लिए अंतर्राष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण में नियुक्त तीन एशियाई न्यायाधीशों में से एक थे जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किए गए जापानी युद्ध अपराधों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसे “टोक्यो ट्रायल्स” के नाम से जाना जाता है। न्यायाधिकरण के सभी न्यायाधीशों में वह एकमात्र ऐसे न्यायाधीश थे जिन्होंने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि “सभी प्रतिवादी दोषी नहीं थे”।
कुमार ने लोगों के बीच स्थायी संबंधों पर जोर दिया जो विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग की नींव के रूप में काम करता है, जिसके लिए अधिक विस्तार और गहन जुड़ाव की भी आवश्यकता है।
कुलपति ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान के राजनीतिक विकास के लिए भारत के ऐतिहासिक समर्थन पर प्रकाश डाला। उन्होंने जापान की संप्रभुता और अखंडता को मान्यता देते हुए जापान के पुनरुत्थान और प्रगति को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका पर जोर दिया। जापान की संप्रभुता को मान्यता देने के लिए भारत का प्रारंभिक समर्थन स्पष्ट था और यह ऐसे समय में आया जब 1950 के दशक की शुरुआत में दुनिया के अधिकांश देश ऐसा करने के प्रति अनिच्छुक थे। भारत-जापानी संबंधों के विकास के साथ समानताएं दर्शाते हुए, कुमार ने ऑटोमोबाइल क्षेत्र पर मारुति सुजुकी के परिवर्तनकारी प्रभाव जैसे उदाहरणों का हवाला दिया, जो नवाचार और आर्थिक सहयोग की क्षमता को प्रदर्शित करता है। उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि इस ऐतिहासिक सहयोग ने, विशेष रूप से भारत में मध्यम वर्ग की आबादी के लिए, परिवहन तक पहुंच को सुलभ बनाया और भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र में सुधार और विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।
कुमार ने दोनों देशों के बीच प्रबुद्ध राष्ट्रीय हितों और लोकतांत्रिक मूल्यों के एक होने पर जोर देते हुए लोकतांत्रिक सिद्धांतों, कानून के शासन और मानवाधिकारों के सम्मान के संरेखण पर जोर दिया। उन्होंने भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को रेखांकित किया, जो 35 वर्ष से कम उम्र के एक अरब लोगों के माध्यम से प्रकट होता है, जिसमें बढ़ती युवा आबादी आपसी विकास और प्रगति के लिए अपने जापानी समकक्षों के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है।
हिंद-प्रशांत रणनीतिक निर्माण पर प्रकाश डालते हुए कुमार ने क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में जापान की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, विकास और सुरक्षा से संबंधित साझा चुनौतियों से निपटने के लिए भारत और जापान के बीच दीर्घकालिक सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।
उनके भाषण में जापानी सांसदों के बीच गहरी दिलचस्पी ली और उस पर चर्चा की। सांसदों के सवालों और दृष्टिकोणों के जवाब में कुमार ने संयुक्त राष्ट्र के भीतर भारत और जापान के संयुक्त प्रयासों, सुरक्षा परिषद में उनके स्थायी प्रतिनिधित्व और संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में सुधार की वकालत की। इसके अलावा, उन्होंने भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उल्लिखित उत्कृष्टता, समानता और समावेशन के सिद्धांतों पर जोर देते हुए उच्च शिक्षा के प्रति भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को दोहराया।
कुमार ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि ये सिद्धांत छात्रवृत्ति की पेशकश और हमारे छात्रों को संस्थागत समर्थन के माध्यम से उत्कृष्टता, विविधता और पहुंच के प्रति हमारी प्रतिबद्धता में प्रकट होते हैं। कुमार ने कहा कि जेजीयू जैसे विश्वविद्यालय और भारत के अन्य प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थान संस्थान निर्माण के लिए हमारे संकाय के बीच अनुसंधान उत्कृष्टता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माहौल को प्रोत्साहित करते हैं।
अंत में, कुमार ने भारत-जापान संबंधों की परिवर्तनकारी क्षमता को दोहराया, जिसे दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के बीच शैक्षिक साझेदारी के विस्तार पर आधारित बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने उच्च शिक्षा में भारत-जापान सहयोग के भविष्य के ग्राफ, अनुसंधान तथा छात्रवृत्ति में उत्कृष्टता द्वारा परिभाषित परिदृश्य की कल्पना, और मितव्ययी नवाचार को बढ़ावा देने में नेतृत्व के माध्यम से ज्ञान के निर्माण के बारे में आशा व्यक्त किया।
कुमार ने जापान में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के एक उच्च स्तरीय संकाय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया जिसमें स्ट्रैटीजिक इंटरनेशनल इनिशिएटिव के डीन, प्रोफेसर ऑफ डिप्लोमैटिक प्रैक्टिस, और जिंदल ग्लोबल सेंटर फॉर जी20 स्टडीज के निदेशक प्रोफेसर (डॉ) मोहन कुमार; जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज की डीन प्रोफेसर कैथलीन ए मोद्रोवस्की; कानून के प्रोफेसर और एकेडमिक गवर्नेंस एंड स्टूडेंट लाइफ के डीन प्रोफेसर पद्मनाभ रामानुजम; राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर ऑफिस एडमिनिस्ट्रेशन एंड आउटरीच की डीन प्रोफेसर (डॉ) उपासना महंत; कानून के प्रोफेसर और जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के वाइस डीन तथा जेजीयू में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ यूनाइटेड नेशंस के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ) ) वेसेलिन पोपोव्स्की; और एसोसिएट प्रोफेसर और एसोसिएट डीन तथा ऑफिस ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स एंड ग्लोबल इनिशिएटिव के निदेशक प्रोफेसर (डॉ) अखिल भारद्वाज शामिल थे।
–आईएएनएस
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