नई दिल्ली, 5 अगस्त (आईएएनएस)। उच्च रक्तचाप मुख्य रूप से हृदय को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है, लेकिन यह बीमारी धीरे-धीरे शरीर के अन्य अंगों जैसे मस्तिष्क, आंखें, गुर्दे जैसे दूसरे अंगों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि यह मधुमेह और कुछ ऑटोइम्यून बीमारियाँ का कारण भी बन सकता है।
बीपी या रक्तचाप हमारे शरीर के अंगों के समुचित कार्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके दो माप होते हैं – सिस्टोलिक और डायस्टोलिक दबाव – जो हृदय के रक्त को पंप करते समय रक्त वाहिका की दीवारों पर लगाए गए बल को दर्शाता है।
उच्च रक्तचाप (हाई बीपी) इसके लक्षण विकसित होने से पहले वर्षों तक चुपचाप शरीर को नुकसान पहुंचाता है, और विभिन्न अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
हृदय विशेष रूप से कमजोर होता है, क्योंकि बढ़ा हुआ बीपी इसकी मांसपेशियों पर दबाव डालता है और दिल के दौरे, दिल की धड़कन का रुकना या अतालता (धड़कन में अनियमितता) जैसी स्थितियों को जन्म दे सकता है।
इसके अतिरिक्त, हाई बीपी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जो मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह को ख़राब कर सकता है, जिससे संभावित रूप से स्ट्रोक या संज्ञान में कमी हो सकती है।
नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के कार्डियोलॉजी और कार्डियो थोरेसिक सर्जरी के सलाहकार डॉ. वरुण बंसल ने आईएएनएस को बताया, “उच्च रक्तचाप हृदय प्रणाली पर दबाव डालता है, जिससे कोरोनरी धमनी रोग, दिल की विफलता जैसी स्थिति का खतरा होता है और दिल के दौरे तथा स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।”
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित मैक्स अस्पताल, वैशाली के इंटरनल मेडिसिन के निदेशक डॉ. अजय गुप्ता ने कहा, ”हृदय के अलावा, लगातार उच्च रक्तचाप शरीर के लगभग सभी अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिसमें मस्तिष्क, बड़ी धमनियां, छोटी धमनियां शामिल हो सकती हैं।”
डॉ. गुप्ता ने कहा, “हृदय में यह दिल की धड़कन रुकने का कारण बन सकता है। मस्तिष्क में यह इस्केमिक स्ट्रोक या रक्तस्राव कर सकता है जिसे आमतौर पर मस्तिष्क रक्तस्राव के रूप में जाना जाता है।
“गुर्दे में यह क्रोनिक किडनी रोग या गुर्दे की विफलता का कारण बन सकता है जो अंततः अंग क्षति का कारण बनता है और गुर्दे के प्रत्यारोपण पर समाप्त होता है। कुछ रोगियों में, यकृत प्रभावित होता है, जिससे फैटी यकृत रोग होता है। यह रेटिनोपैथी का कारण बन सकता है जिसके कारण बाद में आंखों की रोशनी भी जा सकती है।”
उन्होंने कहा कि इससे रक्त वाहिकाओं में सूजन भी हो सकती है और धमनियों, नसों या लसीका वाहिकाओं पर प्रभाव पड़ सकता है।
इसके अलावा, उच्च रक्तचाप अन्य बीमारियों को भी बढ़ा सकता है, जिससे समग्र स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है।
डॉ. बंसल ने कहा, “उच्च रक्तचाप मधुमेह के साथ मिलकर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह इंसुलिन संवेदनशीलता को कम करता है और गुर्दे की बीमारी, रेटिनोपैथी और तंत्रिका क्षति सहित मधुमेह संबंधी जटिलताओं में योगदान कर सकता है। इसके अलावा, विशेष रूप से वृद्ध वयस्कों में मनोभ्रंश का खतरा बढ़ा सकता है।”
हाइपरटेंशन के अलावा लो बीपी का असर भी हमारे शरीर पर पड़ता है। निम्न रक्तचाप (हाइपोटेंशन) भी उतना ही महत्वपूर्ण है और इस पर भी समान ध्यान देने की आवश्यकता है।
डॉ. गुप्ता ने कहा, “लो बीपी अंगों तक रक्त के संचार में कमी ला सकता है। उन्होंने कहा, “जब रक्तचाप बहुत कम हो जाता है, तो इससे महत्वपूर्ण अंगों में अपर्याप्त रक्त प्रवाह हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप चक्कर आना, बेहोशी और थकान जैसे लक्षण हो सकते हैं। गंभीर मामलों में, यह अंग क्षति या विफलता का कारण बन सकता है।”
आमतौर पर लो बीपी किसी दूसरे कारण से होता है। यह दस्त, शरीर में पानी की कमी या सेप्सिस या संक्रमण के कारण हो सकता है। इसलिए प्राथमिक कारण का इलाज करने से लो बीपी के इलाज में मदद मिलती है।
यह किसी अंतर्निहित चिकित्सा स्थिति का संकेत भी हो सकता है, जैसे हृदय की समस्याएं, या अंतःस्रावी विकार। डॉक्टरों ने कहा कि कुछ मामलों में, यह कुछ दवाओं का दुष्प्रभाव हो सकता है।
डॉ. बंसल ने कहा, “विशेष रूप से चिंताजनक ऑर्थोस्टैटिक या पोस्टुरल हाइपोटेंशन है, जहां खड़े होने पर बीपी नाटकीय रूप से गिर जाता है, जिससे गिरने और चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। कम बीपी वाली गर्भवती महिलाओं को सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह बच्चे की वृद्धि और विकास को प्रभावित कर सकता है।”
जीवनशैली में बदलाव और निर्धारित दवाओं के माध्यम से रक्तचाप का उचित प्रबंधन इन अंतर्निहित बीमारियों को बिगड़ने से रोकने और बेहतर समग्र स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आवश्यक है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ नियमित निगरानी और परामर्श इन जोखिमों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
–आईएएनएस
एकेजे