नई दिल्ली, 1 मार्च (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 10 साल के कार्यकाल में दुनिया के देशों के साथ भारत के रिश्तों में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। भारत कई मामलों में आज दुनिया के देशों की अगुवाई कर रहा है। मोदी सरकार की सशक्त विदेश नीति का ही नतीजा है कि दुनिया के कई देश बहुत सारे क्षेत्रों में भारत की अगुवाई को स्वीकार कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ को भी इस दौरान तेजी से आगे बढ़ाया है। ऐसे में 50 प्रतिशत की हिंदू आबादी वाले देश मॉरीशस के साथ भी भारत ने कुछ ऐसा समझौता किया कि इससे चीन और पाकिस्तान दोनों परेशान हो गए हैं। वहीं, मालदीव जो भारत को आंख दिखाने की कोशिश चीन की शह पर कर रहा था अब उसके भी पसीने छूट रहे हैं।
दरअसल, भारत और मालदीव के बीच चल रही तनातनी के बीच पहले तो पीएम मोदी के लक्षद्वीप दौरे की वजह से उसे बड़ा आर्थिक झटका लगा तो वहीं दूसरी तरफ मॉरीशस के साथ भारत का बढ़ता सहयोग अब मालदीव के पसीने छुड़ाने लगा है।
मालदीव ने अपनी विदेश नीति को जैसे ही चीन के पक्ष में मोड़ा भारत ने भी हिंद महासागर में उसका काट ढूंढ लिया है। भारत ने इंडो-पैसिफिक में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए मॉरीशस को चुन लिया। हिंद महासागर पर अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण भारत के लिए मॉरीशस हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। इसके साथ ही भारत मॉरीशस को फॉरवर्ड अफ्रीका के नजरिए से देख रहा है।
मॉरीशस एक ऐसा देश है, जहां की 70 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है। भारत ने ऐसे में मॉरीशस के अगालेगा द्वीप पर एक नई हवाई पट्टी और सेंट जेम्स जेट्टी का उद्घाटन करके एक नया रणनीतिक चैनल खोला है। भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति और सागर के तहत इसे प्राथमिकता दी गई है। इसके साथ ही इसकी वजह से भारत अब पश्चिमी हिंद महासागर में अपनी समुद्री सुरक्षा फुटप्रिंट और नौसैनिक उपस्थिति का विस्तार करने में सक्षम होगा।
बता दें कि हिंद महासागर में चीन की बढ़ती ताकत के साथ ही उसने हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती में एक रणनीतिक बंदरगाह बनाया है। इसके साथ ही चीन कई बंदरगाहों पर अपनी स्थिति मजबूत बनाकर इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है। इसमें से श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह शामिल है। ऐसे में भारत जो क्वाड का हिस्सा है, जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। वह जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैले क्षेत्र में चीनी आधिपत्य के खिलाफ एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहे हैं और भारत ने इसमें मॉरीशस के साथ समझौता कर चीन को कड़ा संदेश दे दिया है।
भारत ने इसके साथ ही एक मजबूत संदेश दिया है कि उसके पास हिंद महासागर के बड़े क्षेत्र को कवर करने की समुद्री क्षमता है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूएई के साथ मिडिल ईस्ट यूरोप कॉरिडोर के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किया है, जिससे भारत से लेकर यूरोप तक कॉरिडोर का रास्ता साफ हो गया है। इस कॉरिडोर में इजरायल एक अहम हिस्सा है, जो भारत को यूरोप से जोड़ेगा।
इस कॉरिडोर के जरिए भारत अरब सागर के रास्ते यूएई से जुड़ेगा और वहां से फिर से ट्रेन के रास्ते सऊदी अरब, जॉर्डन तथा इजरायल के रास्ते यूरोप तक जुड़ेगा। इस कॉरिडोर को चीन के दो प्रोजेक्ट्स बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का जवाब माना जा रहा है। इसके साथ इसका फायदा हूतियों के खतरे से निपटने में भी होगा।
इसके साथ ही चीन की कोशिश रही है कि वो यूएई और सऊदी अरब में दबदबा बढ़ाकर अमेरिका और भारत को यहां कमजोर करे। लेकिन, इस काम में चीन को सफलता मिल ही नहीं पाई और ये दोनों देश चीन की कोविड के बाद बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बाद से उसपर भरोसा ही नहीं कर पा रहे हैं। जबकि मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा के लिए यूएई, सऊदी अरब, अमेरिका के अलावा जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों को साथ लाने में नरेंद्र मोदी सरकार सफल रही।
–आईएएनएस
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