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Home ताज़ा समाचार

कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ एकजुट हों देश के 13 करोड़ आदिवासी – हेमंत सोरेन

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August 9, 2023
in ताज़ा समाचार
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रांची, 9 अगस्त (आईएएनएस)। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि देश के 13 करोड़ आदिवासियों पर कट्टरपंथियों के हमले हो रहे हैं। मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे भी कट्टरपंथी ताकतें हैं। ऐसे में आदिवासियों को संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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रांची, 9 अगस्त (आईएएनएस)। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि देश के 13 करोड़ आदिवासियों पर कट्टरपंथियों के हमले हो रहे हैं। मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे भी कट्टरपंथी ताकतें हैं। ऐसे में आदिवासियों को संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

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रांची, 9 अगस्त (आईएएनएस)। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि देश के 13 करोड़ आदिवासियों पर कट्टरपंथियों के हमले हो रहे हैं। मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे भी कट्टरपंथी ताकतें हैं। ऐसे में आदिवासियों को संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

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रांची, 9 अगस्त (आईएएनएस)। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि देश के 13 करोड़ आदिवासियों पर कट्टरपंथियों के हमले हो रहे हैं। मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे भी कट्टरपंथी ताकतें हैं। ऐसे में आदिवासियों को संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

–आईएएनएस

एसएनसी/एबीएम

रांची, 9 अगस्त (आईएएनएस)। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि देश के 13 करोड़ आदिवासियों पर कट्टरपंथियों के हमले हो रहे हैं। मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे भी कट्टरपंथी ताकतें हैं। ऐसे में आदिवासियों को संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

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रांची, 9 अगस्त (आईएएनएस)। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि देश के 13 करोड़ आदिवासियों पर कट्टरपंथियों के हमले हो रहे हैं। मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसके पीछे भी कट्टरपंथी ताकतें हैं। ऐसे में आदिवासियों को संघर्ष के लिए एकजुट होना होगा।

सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

इस महोत्सव की शुरुआत होने के पहले रांची में देश के विभिन्न भागों के आदिवासियों की संस्कृतियों को दर्शाती रैली निकाली गई।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी दिवस के मौके पर बुधवार को रांची में आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव में बोल रहे थे। महोत्सव की शुरुआत मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए मौन प्रार्थना के साथ हुई।

हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

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आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

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सोरेन ने कहा कि मैं देशभर के आदिवासियों से कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने की अपील करता हूं।

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हेमंत सोरेन ने कहा कि आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हम धर्म क्षेत्र के आधार पर बंटे हैं। हमारा लक्ष्य, हमारी समस्या एक जैसी है तो हमारी लड़ाई भी एक जैसी होनी चाहिए। देश में आदिवासियों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है।

हमारी व्यवस्था इतनी निर्दयी है कि उन्होंने यह भी पता नहीं किया कि खदानों, उद्योगों के दौरान कितने लोग विस्थापित और बेघर हुए। जो लोग इस दौरान विस्थापित हुए उनमें से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। इन्हें अपनी जड़ों से काट दिया गया है।

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है, बंधुआ मजदूर बना हुआ है। राज्य में लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दी गयी। लेकिन विस्थापितों और आदिवासियों को उस अनुपात में रोजगार और नौकरी नहीं मिली।

हेमंत ने कहा कि हमारी धरती तप रही है लेकिन कंपनियां और केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है। किसकी संपत्ति खत्म हुई, किसकी जमीन गई? जो विकसित हैं वो कौन हैं? इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की और आदिवासियों का जिक्र नहीं किया गया है।

देश की आजादी के लिए आदिवासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी के अधिकार को किसी और को दिया जा रहा है। लोग हमारे नाम तक छीनने लगे हैं। हम मूल निवासी हैं, प्रकृति का हिस्सा हैं। कोई हमें वनवासी कहकर चिढ़ा रहा है और कोई जंगली बता रहा है।

आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलता है तो उन्हें चुप कराने की साजिश रची जा रही है। समाज की मुख्य धारा के माध्यम से हमेशा प्रयास किया गया है कि इतिहास में हमारी कोई भूमिका ना रहे।

जब हम इतिहास जानने का प्रयास करते हैं तो 1800 ई. के पहले का इतिहास नहीं मिलता है। हमें टुकड़ों में बांटकर देखने का प्रयास किया गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया। इस देश को गढ़ने में आदिवासी समाज की भूमिका की फिर से व्याख्या की जानी चाहिए। हमारे पास विश्व में मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है, बस उसकी दृष्टि होनी चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व सीएम और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी पूरे देश और पूरी दुनिया में हैं। आदिवासी मजदूरी करता है। हम आदिवासी दिवस मनाते हैं आने वाली पीढ़ी भी मनाती रहेगी।

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