बेंगलुरु, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। संसद में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर निजी सदस्य विधेयक पर हुई चर्चा ने इस मुद्दे को एक बार फिर तूल दे दिया है। कई भाजपा शासित राज्यों द्वारा इस दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाए जाने के साथ कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा भी राजनीतिक लाभ के लिए इसे उछालने के लिए तैयार दिख रही है।
बेंगलुरु में भ्रष्टाचार के मुद्दों और लड़खड़ाते नागरिक बुनियादी ढांचे के बावजूद बोम्मई सरकार कांग्रेस पार्टी से लड़ने के लिए हिंदुत्व कार्ड चला रही है।
कर्नाटक, दक्षिण भारत में एक प्रमुख आर्थिक शक्ति है, इसलिए देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए यह महत्वपूर्ण है।
अपने आक्रामक हिंदुत्व रुख के हिस्से के रूप में कर्नाटक में भाजपा सरकार ने पहले से ही गौहत्या और धर्मातरण पर रोक लगाने वाले कानून पेश किए हैं। समान नागरिक संहिता भाजपा के तरकश में अगला तीर लगती है।
यूसीसी, सभी नागरिकों के लिए उनके धर्म के बावजूद समान व्यक्तिगत नागरिक कानूनों को अनिवार्य करता है, कुछ ऐसा है जो भाजपा और उसके स्रोत – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मूल में रहा है।
नवंबर के अंत में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा था कि समान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर उनकी सरकार बहुत गंभीर है। यह टिप्पणी पार्टी की गुजरात और हिमाचल प्रदेश इकाइयों के संबंधित राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए उनके घोषणापत्र में इस विवादास्पद मुद्दे को शामिल किए जाने के मद्देनजर आई थी।
बोम्मई ने शिवमोग्गा में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, यूसीसी पर राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गंभीर बहस चल रही है। इरादा इसे सही समय पर लागू करने का है। हम इसे अपने राज्य में लागू करने के तरीकों पर भी चर्चा कर रहे हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षक रामकृष्ण उपाध्याय ने कहा कि कर्नाटक सरकार निकट भविष्य में इसको लागू करने का फैसला लेगी, इसकी संभावना बहुत कम है। उनके बयानों को 2024 में होने वाले संसदीय चुनाव के लिए भाजपा की योजनाओं के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, कर्नाटक और अन्य राज्यों में भाजपा नेताओं के इन बयानों को पानी के परीक्षण के प्रयास के रूप में अधिक देखा जाना चाहिए। इस तरह के कदमों पर लोग कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और मुस्लिम समुदाय की क्या प्रतिक्रिया रहती है, यह देखने के बाद ही इसे 2024 के आम चुनावों के लिए मुद्दा बनाया जा सकता है।
जाहिर है, भाजपा के कदमों को राज्य के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में धर्मनिरपेक्ष दलों द्वारा संदेह के साथ देखा जा रहा है। इस महीने की शुरुआत में पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्युलर) के संस्थापक एचडी देवेगौड़ा ने इस मुद्दे पर भाजपा के कदमों का स्पष्ट विरोध किया था।
उन्होंने कहा कि पूरे देश में व्यापक विरोध के कारण समान नागरिक संहिता लागू करना असंभव है। उन्होंने कहा था, संविधान इसकी अनुमति नहीं देता है और मैं व्यक्तिगत रूप से समान नागरिक संहिता का भी विरोध करता हूं।
एक चुनावी मुद्दे के रूप में यूसीसी ने गुजरात में भाजपा को अच्छा लाभांश दिया है, जहां लगभग 10 फीसदी मुस्लिम आबादी है। दूसरी ओर, हिमाचल, जिसमें लगभग 4 प्रतिशत का अपेक्षाकृत कम अल्पसंख्यक घटक है, ऐसा लगता है कि यूसीसी आधार से अप्रभावित रहा है।
कर्नाटक में मुस्लिम आबादी का 14 प्रतिशत हिस्सा है और तटीय इलाकों के साथ-साथ राज्य के अन्य क्षेत्रों में में भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव है। यह राज्य दक्षिणपंथी हिंदू और मुस्लिम राजनीति के लिए एक उर्वर भूमि रहा है।
हाल ही में हिजाब, हलाल और अंत में मंगलुरु में ऑटो-रिक्शा विस्फोट के साथ-साथ कई हत्याओं ने दोनों समुदायों के बीच लड़ाई की रेखाएं खींच दी हैं।
हिजाब, हलाल हो या लव जिहाद, कर्नाटक में पिछले एक साल में सामने आईं कई घटनाएं राजनीतिक एजेंडे को मजबूती से स्थापित करती दिख रही हैं, क्योंकि राज्य धीरे-धीरे मई 2023 में संभावित रूप से विधानसभा चुनावों की ओर बढ़ रहा है।
सत्ताधारी पार्टी को आक्रामक कांग्रेस का सामना करना पड़ रहा है, जिसे अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति झुकाव वाली पार्टी के रूप में देखा जाता है। भाजपा को उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों में समान नागरिक संहिता का मुद्दा राज्य में जोर पकड़ेगा।
–आईएएनएस
एसजीके/एएनएम