भोपाल, 19 नवंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले दलबदल इस बार ज्यादातर एकतरफा रहा है। कई नेताओं ने भाजपा की जगह अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कांग्रेस की शरण ली।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने दावा किया है कि इस बार मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले दलबदल का उल्टा चलन देखा गया है।
पिछले कुछ सालों से कांग्रेस से बीजेपी में दल-बदल होता रहता था। ऐसा प्रतीत होता है कि ‘सिंधिया फैक्टर’ ने रुझान को उलटने में एक प्रमुख उत्प्रेरक के रूप में काम किया है।
अहम बात यह है कि मध्य प्रदेश में प्राथमिक चुनावी मुद्दों में से एक भाजपा के मार्च 2020 में 15 महीने पुरानी कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से गिराना था। कांग्रेस नेतृत्व ने प्रचार के दौरान सिंधिया की विश्वसनीयता पर प्रहार करते हुए इसे उजागर किया।
शुक्रवार को सभी 230 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हुआ, जिसमें 76.22 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले। यह मध्य प्रदेश के चुनावी इतिहास के पिछले 66 वर्षों में सबसे अधिक है। इसके बाद राजनीतिक विश्लेषकों ने भारी मतदान प्रतिशत को संभावित नतीजे से जोड़ते हुए अपना-अपना आकलन शुरू कर दिया है।
वहीं, राजनीतिक पर्यवेक्षक यह भी आकलन करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या दलबदलुओं का असर चुनाव नतीजों पर पड़ेगा?
यदि हां, तो यह किस हद तक और किसका पक्षधर होगा?
इस संदर्भ में, स्थिति कई मायनों में सत्तारूढ़ भाजपा की तुलना में कांग्रेस के पक्ष में है क्योंकि भाजपा से बड़ी संख्या में नेताओं के विपक्ष में जाने से एक नैरेटिव स्थापित करने में मदद मिली है।
दूसरे, दलबदल करने वाले बड़े पैमाने पर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से थे और इससे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके गढ़ में झटका लगा है। उनके कई वफादार, जो 2020 में भाजपा में शामिल हुए थे, उन्होंने न केवल अपनी ‘घर-वापसी’ की है, बल्कि उनके खिलाफ मुखर भी हुए हैं।
कांग्रेस ने केवल चार-पांच उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जो भाजपा से आए हैं, लेकिन, उनमें से अधिकांश के जीतने की संभावना है।
भाजपा के पूर्व मंत्री दीपक जोशी, जो पूर्व सीएम कैलाश जोशी के बेटे हैं, ने इस साल मई में कांग्रेस में शामिल होकर भाजपा को बड़ा झटका दिया। वह देवास जिले के खातेगांव विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस ने होशंगाबाद से पूर्व भाजपा विधायक गिरिजा शंकर शर्मा को उनके भाई और तीन बार के विधायक सीताशरण शर्मा के खिलाफ मैदान में उतारा है।
बीजेपी के पूर्व विधायक अभय मिश्रा रीवा की सेमरिया सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। मिश्रा और उनकी पत्नी नीलम मिश्रा ने मिलकर 2008 और 2013 में इस विशेष सीट से दो विधानसभा चुनाव जीते हैं।
एक अन्य पूर्व भाजपा नेता और सिंधिया के वफादार, जो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, समंदर पटेल हैं, जिनके सबसे पुरानी पार्टी में जाने ने हर तरफ ध्यान आकर्षित किया है। वह नीमच जिले की जावद सीट से भाजपा के ओम प्रकाश सकलेचा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।
रीवा की तेनोथर सीट से बीजेपी ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी को मैदान में उतारा है और ब्राह्मण चेहरा होने के कारण उनकी स्थिति मजबूत बताई जा रही है।
–आईएएनएस
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