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Home ताज़ा समाचार

कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है : केरल उच्च न्यायालय

by
June 27, 2024
in ताज़ा समाचार
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कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है : केरल उच्च न्यायालय
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कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

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“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

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कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

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कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

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न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

सीबीटी/

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कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

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कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

–आईएएनएस

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कोच्चि, 27 जून (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई शिकायत आत्महत्या के लिए उकसाने या उकसाने के समान नहीं है।

न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष की गई कोई शिकायत आईपीसी की धारा 107 तहत उकसाने के रूप में नहीं मानी जी सकती। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य के खिलाफ कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत करने का हकदार है। शिकायत प्राप्त होने पर, सक्षम अधिकारी शिकायत की जांच करने या कराने का भी हकदार है।

“यदि ऐसे कृत्यों को उकसाने के रूप में माना जाएगा, तो हर व्यक्ति किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से पहले दो बार सोचेगा और यह कल्याणकारी राज्य के हित में अच्छा नहीं होगा। किसी कानूनी अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिकायत दर्ज करने का उद्देश्य आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है।”

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में आरोपी याचिकाकर्ताओं के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला दिया। आरोपियों ने उनके खिलाफ दायर अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

मामलेे के मुताबिक एक शख्स ने 2016 में दो सुसाइड नोट लिखने के बाद फांसी लगा ली थी। सुुुुुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए याचिकाकर्ताओं को जिम्मेदार बताया था।

सुसाइड नोट में उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और शिकायत के आधार पर उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, इसलिए उसने आत्महत्या कर ली।

न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराना उकसाना माना जाएगा, तो लोग किसी भी कानूनी अधिकारी से संपर्क करने में संकोच करेंगे। मामले में किसी भी तरह से याचिकाकर्ताओं का इरादा किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं था। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि याचिकाकर्ताओं का इरादा आत्महत्या के लिए उकसाने का था।

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