नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) ने गुरुवार को “कानूनी त्रुटियों” का हवाला देते हुए कुख्यात ‘साइफर मामले’ की कार्यवाही 11 जनवरी तक रोक दी। यह जानकारी मीडिया रिपोर्टों में दी गई।
कहा गया है कि न्यायमूर्ति मियांगुल हसन औरंगजेब ने मुकदमे को चुनौती देने वाली इमरान खान की याचिका पर संक्षिप्त आदेश पारित किया।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कार्यवाही के दौरान पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल मंसूर अवान और अतिरिक्त एजीपी इकबाल दुग्गल एफआईए की अभियोजन टीम के साथ अदालत में पेश हुए, जबकि पीटीआई के वकील सलमान अकरम राजा वीडियो लिंक के जरिए अपनी दलील पेश की।”
रिपोर्टों में कहा गया है कि न्यायमूर्ति औरंगजेब ने पूछा कि जब अदालत ने खुली सुनवाई का आदेश दिया था तो बंद कमरे में कार्यवाही क्यों की जा रही थी। उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा का मामला कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
उन्होंने यह भी देखा कि परिवार के सदस्यों और मीडिया को सुनवाई में शामिल होने की अनुमति दी गई थी, लेकिन एक बार फिर एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि कार्यवाही बंद कमरे में घोषित की गई है।
एजीपी अवान ने स्पष्ट किया कि केवल गवाहों की गवाही बंद कमरे में की जा रही है, संपूर्ण मुकदमे की नहीं। उन्होंने विस्तार से बताया कि 25 में से 13 गवाहों की गवाही दर्ज की गई थी और दो से जिरह की गई थी।
अवान ने कहा, “बचाव पक्ष ने 10 गवाहों से जिरह नहीं की है।” उन्होंने कहा कि 13 गवाहों की गवाही दर्ज होने के बाद मीडिया को अनुमति नहीं दी गई थी।
अभियोग की एक प्रति के अनुसार, इससे पहले अक्टूबर में एफआईए ने इमरान और कुरेशी के खिलाफ सिफर मामले में 28 गवाहों की एक सूची पेश की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 दिसंबर को दोनों पीटीआई नेताओं को सिफर मामले में जमानत दे दी, क्योंकि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं थी कि इमरान ने राजनयिक दस्तावेज को आम जनता के सामने उजागर किया था।
हालांकि, अदियाला जेल से उनकी रिहाई चल रहे अन्य मामलों में उनकी संलिप्तता के कारण रुकी हुई है।
यह मामला 27 मार्च, 2022 को इस्लामाबाद में एक रैली के दौरान इमरान द्वारा एक कागज के सार्वजनिक प्रदर्शन से उत्पन्न हुआ था, जिसमें उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव से पहले इसे “अंतर्राष्ट्रीय साजिश” के सबूत के रूप में दावा किया था, जिसके कारण उनकी सरकार बाहर हो गई थी।
–आईएएनएस
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