बेंगलुरु, 7 अगस्त (आईएएनएस)। तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने हालिया फैसले में कहा है कि काले रंग को लेकर नस्लीय टिप्पणी ‘क्रूरता’ के बराबर है।
पति ने फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक न दिए जाने के फैसले पर सवाल उठाते हुए कोर्ट में अपील याचिका दायर की थी। सब-डिवीजन बेंच ने कहा कि पत्नी ने लगातार पति को उसके काले रंग के लिए अपमानित किया और उसे काली त्वचा वाला व्यक्ति कहकर परेशान किया।
पीठ ने कहा कि इस तथ्य को छिपाने के लिए पत्नी ने उस पर अवैध संबंध का आरोप लगाया था। पीठ ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करने का आदेश देते हुए रेखांकित किया कि इसे निस्संदेह क्रूरता माना जाता है। अदालत ने शादी भी रद्द कर दी और पति को तलाक दे दिया।
इस जोड़े ने 2007 में शादी की थी, लेकिन पति ने 2012 में तलाक के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसने 13 जनवरी 2017 को पति की याचिका रद्द कर दी थी।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि शादी के बाद उसकी पत्नी हमेशा उसे काला आदमी कहकर ताने मारती थी और अपमानित करती थी। उसने अपनी बेटी की खातिर किसी तरह अपमान सह लिया। उसने यह भी दावा किया था कि उसकी पत्नी ने 2011 में उनकी वृद्ध मां और परिवार के सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
इस मामले में उसे यातनाएं भी झेलनी पड़ीं और उसने 10 दिन थाने और कोर्ट में बिताए थे।
पति ने गुहार लगाई थी कि अदालत तलाक मंजूर करे। उसने दावा किया, “पत्नी अपने मायके चली गई और फिर कभी वापस नहीं लौटी। उसने मेरे नियोक्ता से भी शिकायत की थी। मुझे बहुत कष्ट सहना पड़ा और मैं अवसाद में भी था।”
पत्नी ने याचिका रद्द करने की गुहार लगाई और दावा किया कि उसके पति का अफेयर था और इस अफेयर से उसका एक बच्चा भी है।
उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते थे और उसे बाहर जाने और देर से घर आने नहीं देते थे।
पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आपराधिक शिकायत भी दर्ज कराई थी।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने याचिकाकर्ता पर बेबुनियाद आरोप लगाए हैं।
पीठ ने यह भी कहा कि पत्नी का यह दावा कि वह अपने पति के बिना वर्षों तक रहते हुए भी उसके साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से रहने को तैयार है और शिकायत वापस नहीं लेने से पता चलता है कि उसे अपने पति के साथ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
इसके बाद कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पति को तलाक दे दिया।
–आईएएनएस
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