बेंगलुरू, 26 मार्च (आईएएनएस)। राज्य में कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ में शामिल विपक्ष के नेता सिद्धारमैया को कुरुबा और अहिंदा समुदायों के समर्थन से सर्वोच्च पद पर पहुंचने का भरोसा है। सिद्धारमैया अल्पसंख्यकों, ओबीसी और उत्पीड़ित वर्गों के नेता के रूप में उभरे हैं। वह कुरुबा समुदाय से आते हैं, जिसे लिंगायत और वोक्कालिगा के बाद कर्नाटक में तीसरी सबसे प्रभावशाली जाति माना जाता है।
राज्य में प्रभावशाली लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के प्रभावशाली नेताओं के सामंती दृष्टिकोण से निपटने की शैली व आरएसएस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनके तीखे हमलों ने उन्हें जन अपील वाला नेता बना दिया है।
सिद्धारमैया उन कुछ नेताओं में से एक हैं, जिन्हें भगवा पार्टी और हिंदुत्व पर अपने तीखे हमलों के बाद केंद्रीय एजेंसियों ने निशाना नहीं बनाया है। सार्वजनिक मंचों पर पीएम मोदी की उनकी मिमिक्री काफी लोकप्रिय है। उन्होंने हाल ही में घोषणा की कि वे अपनी अंतिम सांस तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध करते रहेंगे।
कुरुबा समुदाय कर्नाटक में 50 से 60 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। कुरुबा समुदाय के लगभग 12 से 14 उम्मीदवार विधानसभा के लिए चुने जाते हैं।
सिद्धारमैया ने खुद को कुरुबा समुदाय के एकमात्र नेता के रूप में स्थापित किया है। लेकिन उनकी ताकत अहिन्दा समूहों से आती है। अहिंदा अल्पसंख्यकों, हिंदुलिदा (पिछड़े) और दलितों के साथ खड़ा है।
उनके करीबी सूत्रों ने कहा कि वह एकमात्र ऐसे नेता हैं जो अहिन्दा समूहों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं। राज्य के सभी 224 विधानसभा क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों व दलित वोटों की मौजूदगी है और सिद्धारमैया का 70 से 80 निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभाव है।
जामकहदी निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस विधायक आनंद न्यामागौडा कहते हैं कि सिद्धारमैया कारक एक बड़ी भूमिका निभाएगा क्योंकि वह कुरुबा समुदाय से संबंधित हैं, जो पूरे राज्य में अच्छी संख्या में है। इसके अलावा, सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार एक स्वच्छ सरकार थी।
तब विकास के कई कार्य हुए। न्यामगौड़ा ने कहा कि लोगों को विश्वास है कि अगर सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनते है,ं तो वे राज्य में विकास देखेंगे।
उन्होंने समझाया कि सिद्धारमैया का प्रभाव उत्तरी कर्नाटक में होगा, जहां बड़ी संख्या में उनके अनुयायी हैं। फिलहाल कांग्रेस के लिए अच्छा समय चल रहा है। सत्तारूढ़ बीजेपी की छवि खराब हुई है।
सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय के नेता कैसे बने? एम.टी. मैसूरु तालुक पंचायत के पूर्व अध्यक्ष रविकुमार ने कहा कि सिद्धारमैया से पहले कुरुबा नेता समुदाय का नाम लेने में झिझकते थे। उत्तरी कर्नाटक में स्थिति बहुत खराब थी।
लिंगायत नेता बी.एस. से टक्कर लेने की सिद्धारमैया की क्षमता येदियुरप्पा और वोक्कालिगा नेता एच.डी. देवेगौड़ा ने उन्हें विधानसभा के पटल पर और जमीनी स्तर पर चुनौती देकर उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया।
केएस ईश्वरप्पा, भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री, जो कुरुबा समुदाय से आते हैं, इस बार शिवमोग्गा शहर में एक कठिन स्थिति का सामना कर रहे हैं। सिद्धारमैया एससी / एसटी अनुदान से धन के विचलन को अपराध बनाने वाले पहले सीएम थे।
रविकुमार ने कहा, जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और आरक्षित श्रेणियों के लिए पदोन्नति को रद्द कर दिया, तो वह सिद्धारमैया ने एक कानून बनाया और लाखों अधिकारियों को पदावनत होने से बचाया। सिद्धारमैया ने एससी/एसीटी समूह की भलाई के लिए बड़ा कदम उठाया।
उन्होंने कहा कि यथास्थिति चाहने वाले माफिया के खिलाफ एससी/एसटी और अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने के कदमों ने उन्हें जन नेता बना दिया।
सिद्धारमैया, हालांकि बड़ी संख्या में सीटों पर पार्टी की जीत सुनिश्चित करने की क्षमता रखते हैं, अभी भी यह तय कर रहे हैं कि किस सीट पर चुनाव लड़ा जाए। वह बादामी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, जहां से उन्होंने 2018 में जीत हासिल की थी।
सूत्रों का कहना है कि विपक्ष का गेम प्लान सिद्धारमैया को मुकाबले को मुश्किल बनाकर एक निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित करना है, इसलिए वह अपना निर्वाचन क्षेत्र चुनने में सावधानी बरत रहे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 36.35 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 38.14 फीसदी वोट मिले थे। जद (एस) को 18.3 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस ने अधिक वोट प्राप्त किए, लेकिन वह सीटें जीतने में विफल रही।
2013 के विधानसभा चुनावों में, जब कांग्रेस जीती, तो उसे 36.6 प्रतिशत, जद (एस) को 20.2 प्रतिशत, भाजपा को 19.9 प्रतिशत और केजेपी को 9.8 प्रतिशत वोट मिले। तब कांग्रेस ने 122, जेडी(एस) ने 40, बीजेपी ने 40 और केजेपी ने 6 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे।
सिद्धारमैया इस बार भी भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की उम्मीद कर रहे हैं। इस चुनाव में एससी/एसटी व ओबीसी मतदाताओ को वापस लाना सिद्धारमैया के लिए एक चुनौती है, जो पिछले चुनाव में भाजपा के साथ चले गए थे। सूत्रों का कहना है कि इन समुदायों के मतदाता इस बार कांग्रेस के साथ आएंगे।
–आईएएनएस
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