नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र की वहन क्षमता निर्धारित करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने सुझाव दाखिल किए हैं।
केंद्र ने सुझाव दिया कि सभी 13 हिमालयी राज्यों को समयबद्ध तरीके से वहन क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए कार्रवाई रिपोर्ट और कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान द्वारा तैयार दिशानिर्देशों के अनुसार बहु-विषयक अध्ययन करने के लिए संबंधित राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन और उसमें अन्य सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा।
इसने हिमालयी राज्यों द्वारा तैयार किए गए वहन क्षमता अध्ययनों की जांच या मूल्यांकन करने और कार्यान्वयन के लिए संबंधित राज्यों को अपनी रिपोर्ट भेजने के लिए एक तकनीकी समिति के गठन के निर्देश मांगे।
उत्तराखंड के जोशीमठ में हाल के दिनों में जमीन के फटने और धंसने जैसी समस्याओं की पृष्ठभूमि में भारतीय हिमालयी क्षेत्र की “वहन क्षमता” का आकलन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 21 अगस्त को विशेषज्ञ समिति के गठन पर केंद्र सरकार से सुझाव मांगे थे।
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने एक व्यापक अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल के गठन पर विचार किया था, क्योंकि याचिकाकर्ता ने बताया था कि “वहन क्षमता” टेम्पलेट सरकार द्वारा अतीत में बनाई गई थी और इसका व्यापक अध्ययन विशेषज्ञ संस्थानों द्वारा किए जाने की जरूरत है।
सुनवाई के दौरान केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाली अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि केंद्र सरकार ने 2020 में सभी 13 हिमालयी राज्यों में शहरों और पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों सहित हिल स्टेशनों की वहन क्षमता का आकलन करने के लिए दिशानिर्देश प्रसारित किए हैं। इस वर्ष मई में भेजे गए अनुस्मारक में राज्यों से अपनी कार्य योजनाएं प्रस्तुत करने का अनुरोध किया गया।
याचिका में दावा किया गया है कि 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में फैला भारतीय हिमालय क्षेत्र, अस्थिर और हाइड्रोलॉजिकल रूप से विनाशकारी निर्माण के मुद्दों का सामना कर रहा है – होम स्टे, होटल और वाणिज्यिक आवास, जलविद्युत परियोजनाएं और अनियमित पर्यटन, जिसने कथित तौर पर जल निकासी और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है।
अशोक कुमार राघव द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि ये सरकारें मास्टर प्लान, पर्यटन योजना, ले-आउट, क्षेत्र विकास या जोनल प्लान तैयार करने और लागू करने में विफल रही हैं।
इसमें कहा गया है कि असर क्षमता के अध्ययन के गैर-मौजूद होने के कारण भूस्खलन, भूमि धंसाव, भूमि के टूटने और धंसने जैसे गंभीर भूवैज्ञानिक खतरे, जैसे कि जोशीमठ में और पहले केदारनाथ (2013) में अचानक बाढ़ या हिमनद विस्फोट के रूप में हुए थे। चमोली (2021) में देखा जा रहा है और पहाड़ों में गंभीर पारिस्थितिक और पर्यावरणीय क्षति हो रही है।
विशेष रूप से, शीर्ष अदालत ने कहा है कि वह कार्यवाही का दायरा देश के सभी राज्यों के बजाय हिमालयी क्षेत्रों तक सीमित रखना चाहती है।
–आईएएनएस
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