आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।
अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”
दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।
–आईएएनएस
सीबीटी
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आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।
अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”
दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।
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अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”
दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।
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अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
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अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
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अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
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अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
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न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
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आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।
अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”
दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।
–आईएएनएस
सीबीटी
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आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।
अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”
उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”
दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।