deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

केरल उच्च न्यायालय ने दोषी को पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार के लिए दी छुट्टी

by
October 5, 2023
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

READ ALSO

पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल, मुश्किल से पकड़ा गया आरोपी, जांच शुरू

रैपुरा तहसीलदार रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

ADVERTISEMENT

आईएएनएस कोच्चि, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)। केरल उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक दोषी को कम से कम 15 दिनों की छुट्टी देने का आदेश दिया, ताकि वह बच्चा पैदा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ आईवीएफ उपचार करा सके।

अदालत ने यह आदेश तब दिया, जब उसकी पत्नी ने इस आशय की याचिका दायर की, क्योंकि उसकी इच्छा अपने पति के साथ बच्चा पैदा करने की थी और उसे मिली चिकित्सीय सलाह के अनुसार इलाज के लिए उसकी उपस्थिति आवश्यक है।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने आदेश दिया कि, “यह सच है कि एक दोषी भारत के संविधान के तहत उपलब्ध सभी मौलिक अधिकारों का हकदार नहीं है। लेकिन, याचिकाकर्ता, दोषी की पत्नी, इस अदालत के समक्ष कह रही है कि वह और उसका पति अपना खुद का एक बच्चा चाहते हैं। ऐसे में यह अदालत तकनीकी पहलुओं पर इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती है।”

उन्होंने कहा, “आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि और सजा मुख्य रूप से अपराधियों को सुधारने और पुनर्वास करने के लिए है। राज्य और समाज दोषी को एक सुधरे हुए रूप में जेल से बाहर आते हुए देखना चाहते हैं। एक व्यक्ति जो किसी आपराधिक मामले में सजा काट चुका है, उसे किसी भी अन्य नागरिक की तरह एक सभ्य जीवन जीने का पूरा अधिकार है। लेकिन न्‍यायाधीश ने कहा कि इस आदेश को सभी मामलों में एक मिसाल के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है और प्रत्येक मामले पर अपनी योग्यता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “प्रत्येक मामले पर दावे की वास्तविकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।”

दोषी की 2012 में शादी हुई थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। वह पिछले सात साल से जेल में हैं। जेल अधिकारियों से सकारात्मक मंजूरी नहीं मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने च्च न्यायालय में गुहार लगाया।

–आईएएनएस

सीबीटी

Related Posts

पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल, मुश्किल से पकड़ा गया आरोपी, जांच शुरू
ताज़ा समाचार

पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल, मुश्किल से पकड़ा गया आरोपी, जांच शुरू

June 10, 2025
रैपुरा तहसीलदार रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार
ताज़ा समाचार

रैपुरा तहसीलदार रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार

June 10, 2025
Construction done in Jaitwara town on State Highway 52
जबलपुर

रेलवे ब्रिज के अंदर दो दिन से फंसा है ट्रक

June 10, 2025
Attempt to steal wires from 53 poles fails
जबलपुर

53 खंभों के तार चोरी की कोशिश नाकाम

June 10, 2025
कान में पेचकस डालकर युवक की हत्या
ताज़ा समाचार

कान में पेचकस डालकर युवक की हत्या

June 10, 2025
अमानक नंबर वाले 4664 पर कार्यवाही
जबलपुर

अमानक नंबर वाले 4664 पर कार्यवाही

June 10, 2025
Next Post

मैं मजबूत होकर वापसी कर सकती हूं : सिंधु

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

083780
Total views : 5888940
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In