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केरल में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बेटों को राजनीति के ऊबड़-खाबड़ रास्तों से पड़ रहा है गुजरना

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April 7, 2023
in राष्ट्रीय
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केरल में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बेटों को राजनीति के ऊबड़-खाबड़ रास्तों से पड़ रहा है गुजरना
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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

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सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

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समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

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समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

सीबीटी

तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

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समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

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समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

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समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

सीबीटी

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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

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समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

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तिरुवनंतपुरम, 7 अप्रैल (आईएएनएस)। केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं। इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

–आईएएनएस

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समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है।

सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया। इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है।

मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे। उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया। इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की।

उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे।

लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं। पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी।

करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया।

इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे। लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया।

उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है। इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है।

इसी तरह अगर कोई चांडी के बेटे चांडी ओमन पर नजर डाले, तो उनका अब तक का स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर रहा है।

हालांकि एक समय वह पार्टी के छात्र और युवा विंग में सक्रिय थे, फिर उन्होंने कानूनी पेशा अपनाने के लिए अपना आधार दिल्ली बना लिया। चांडी की तबीयत खराब होने के बाद वह वापस लौटे और राज्य की राजधानी में रुके रहे।

जब कई लोग पूछ रहे थे कि ओमन चांडी स्टार्ट-स्टॉप राजनीतिक करियर के बजाय सक्रिय पूर्णकालिक राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं कर रहे हैं, तो खबर आई कि वह राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा के पूर्णकालिक सदस्य बनने जा रहे हैं।

इस यात्रा के माध्यम से, जूनियर चांडी ने शायद अपनी छाप छोड़ी है कि वह पूर्णकालिक राजनीति के लिए तैयार हैं। यह केवल समय की बात है कि वह चुनावी राजनीति में अपनी शुरुआत कब करेंगे। अब एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा या 2026 के विधानसभा चुनावों में होगा।

दिग्गज मीडिया समीक्षक ए. जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष दिग्गजों के इन बच्चों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने अपने पिता के सफल दौर को ही देखा है।

सभी जानते हैं कि करुणाकरन, एंटनी और चांडी के लिए यह कितना कठिन था, जिन्हें अपनी पार्टी के भीतर और बाहर से कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वे अपने समय के सबसे शीर्ष नेताओं के रूप में उभरे। उनके बच्चों, यहां तक कि मुरलीधरन ने भी कठिन समय का सामना नहीं किया है। करुणाकरन व कांग्रेस पार्टी के टैग के कारण उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को उबारने में कामयाबी हासिल की और अब वह शीर्ष पर पहुंच गए हैं।

अनिल एंटनी के भाजपा में जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, और जूनियर ओमन को अभी भी राजनीतिक परीक्षा से गुजरना है, क्योंकि वह अपने पिता के साये में है। जयशंकर ने कहा, आज के समय में, चीजें बहुत कठिन हैं और केवल समय ही बताएगा अनिल और ओमन का भविष्य क्या होने जा रहा है।

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