नई दिल्ली, 28 जनवरी (आईएएनएस)। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू हो गई है। यूसीसी लागू होने के बाद इसके ड्राफ्ट को तैयार करने के लिए बनी समिति के सदस्य मनु गौड़ ने मंगलवार को आईएएनएस से खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने यूसीसी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की और बताया कि कैसे इस कानून को लागू करने में विभिन्न सामाजिक मुद्दों और कानून की जरूरतों का ख्याल रखा गया है।
मनु गौड़ ने बताया कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव-2022 में भाग लेने वाले दस प्रमुख राजनीतिक दलों को समिति द्वारा आमंत्रित किया गया था। इनमें राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टियां भी शामिल थीं। इनमें से 7 दल जैसे सपा, बसपा, यूकेडी और भाजपा ने समिति के साथ विचार-विमर्श किया, जबकि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और सीपीआई ने इसका बहिष्कार किया। इन दलों से कोई सुझाव प्राप्त नहीं हुए, जिसके कारण उनकी राय यूसीसी को लेकर समिति तक नहीं पहुंची।
उन्होंने कहा कि समिति ने जब इस मुद्दे पर विचार किया, तो यह पाया कि समान नागरिक संहिता संविधान की समवर्ती सूची का हिस्सा है, जिसमें व्यक्तिगत कानूनों का प्रावधान किया गया है। मनु गौड़ ने कहा कि भारत में लिव इन रिलेशनशिप की एक संस्कृति तेजी से विकसित हो रही है और कई लोग इसे गलत तरीके से पेश कर रहे हैं, यह कहकर कि इसे मान्यता दी गई है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय पहले ही लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता दे चुका है और घरेलू हिंसा एक्ट में भी इसके लिए प्रावधान मौजूद हैं। लिव इन में रहने वाले के साथ अगर घरेलू हिंसा होती है तो उसमें मेंटेनेंस तक का प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि बच्चे पढ़ाई करने के लिए शहर में आते हैं और लिव इन में रहने लगते हैं इसके बाद महिलाओं पर ब्लैकमेलिंग के तो वहीं पुरुष पर रेप के आरोप लग जाते हैं। कई मामलों में महिलाएं या पुरुष यह साबित नहीं कर पा रहे थे कि वह लिव इन में थे, क्योंकि उनके पास इसका कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं था। इस समस्या का समाधान करते हुए, समिति ने यह सुझाव दिया कि यदि कोई व्यक्ति लिव इन में रहना चाहता है, तो उसे अपने संबंधों का पंजीकरण कराना चाहिए, जिससे सरकार को उन रिश्तों का रिकॉर्ड मिल सके। इस पंजीकरण की सूचना गोपनीय रखी जाएगी और केवल 18 से 21 साल के जोड़ों के माता-पिता को सूचित किया जाएगा। यह व्यवस्था लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को सुरक्षा और गोपनीयता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।
समिति का मानना है कि ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए यह पंजीकरण बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि किसी भी महिला या बच्चे के अधिकारों की रक्षा की जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि विवाह और लिव इन ये दोनों ही हमारे निजता के अधिकार के अंतर्गत आते हैं और उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार सभी विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है, तो ऐसे रिश्तों का पंजीकरण क्यों नहीं होना चाहिए? इसके साथ ही, यदि किसी व्यक्ति का लिव इन रिलेशनशिप समाप्त हो जाता है, तो दोनों पार्टियों को तुरंत सूचित करने की व्यवस्था की गई है। यदि दोनों पार्टियों के बीच 18 से 21 वर्ष की आयु के बच्चे हैं, तो उन बच्चों के संरक्षण की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
उन्होंने बताया कि पंजीकरण से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि यदि किसी जोड़े के बीच रिश्ते खत्म होते हैं या किसी महिला के साथ धोखा होता है, तो उसकी स्थिति स्पष्ट हो सके। गौड़ ने एक उदाहरण भी दिया जिसमें एक महिला ने समिति से संपर्क किया और बताया कि उसके पति की मृत्यु के बाद उसे कोई पेंशन या सरकारी मदद नहीं मिली क्योंकि वह पहले से ही विवाहित था और महिला को यह जानकारी नहीं थी कि उसके पति का पहले विवाह हो चुका है। ऐसे में अगर रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था होती तो ऐसा नहीं होता, क्योंकि उसके बारे में सारी जानकारी उपलब्ध होती है कि वह कब किसके साथ रहा, वह शादीशुदा है या नहीं और उसका सही पहचान क्या है।
मनु गौड़ ने कहा कि यदि विवाह के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया जा रहा है, तो ऐसे संबंधों का पंजीकरण क्यों नहीं किया जाना चाहिए? उन्होंने स्पष्ट किया कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि इस पंजीकरण से यह सार्वजनिक होगा कि कौन लोग लिव इन में रह रहे हैं। हम सिर्फ यह चाहते हैं कि यदि कोई घटना होती है, जैसे किसी महिला या पुरुष का उत्पीड़न, हत्या या कोई अन्य अपराध, तो सरकार को यह जानकारी हो कि ये लोग एक साथ रह रहे थे।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार समय रहते कदम उठाती है और ऐसे संबंधों का पंजीकरण अनिवार्य कर देती है, तो भविष्य में कोई भी व्यक्ति इस पंजीकरण का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर सकेगा और खुद को बचा सकेगा। इससे पुरुषों और महिलाओं दोनों के अधिकारों की सुरक्षा होगी। यदि कोई पुरुष महिला के साथ लिव इन में रहा और बाद में उसे छोड़ दिया, तो उसे महिला को मेंटेनेंस देने का प्रावधान होगा और उससे जो बच्चे पैदा हुए उसके अधिकारों की रक्षा की जाएगी।
–आईएएनएस
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