इस्लामाबाद, 28 मई (आईएएनएस)। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश के शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान के साथ अपने संबंधों का सबसे अच्छा और सबसे बुरा दौर देखा है।
कभी सैन्य प्रतिष्ठानों के बेहद चहेते रहे इमरान, जिनकी बहुत अच्छी तरह देखभाल की गई और देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरा समर्थन दिया गया, आज उनके लिए सबसे बड़ी भूल बन गए हैं। इमरान खान अब फ्रेंकस्टीन के मॉन्स्टर हैं जिसे रास्ते से हटाना जरूरी है।
यह एक ज्ञात और स्थापित तथ्य है कि खान के राजनीतिक संघर्षों, उनके सरकार विरोधी प्रदर्शनों, रैलियों, लंबे माचरें और राजनीतिक आंदोलनों को तत्कालीन सैन्य प्रतिष्ठान का समर्थन प्राप्त था, जिसने राजनीतिक क्षेत्र में खान के उदय का समर्थन किया और उन्हें नायक पाकिस्तान की गरिमा, उसकी प्रगति और उसके आध्यात्मिक परिवर्तन के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया।
खान ने 2018 में जब चुनाव जीता और प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया, तो उनके विपक्षी दल उन्हें चयनित कहते थे, उन्हें सैन्य प्रतिष्ठान की चयन प्रक्रिया के माध्यम से सत्ता हासिल करने वाला करार देते थे।
खान ने खुद कहा है कि उन्हें तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) कमर जावेद बाजवा, खुफिया एजेंसियों और बड़े पैमाने पर संस्थान का पूरा समर्थन प्राप्त था। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी सहयोगी सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों को बुलाने और विभिन्न निर्णयों के पक्ष में मतदान करने के लिए संसदीय सत्रों और महत्वपूर्ण बैठकों में भाग लेने के लिए मजबूर करने के लिए उनकी मदद लेनी पड़ती थी।
लेकिन, खान की सरकार के समय उनके कुछ फैसलों ने सैन्य प्रतिष्ठान और उनके बीच बड़ी दरारें पैदा कर दीं। विशेषज्ञों का मानना है कि यहीं से सैन्य प्रतिष्ठान की बंदूकें उनके खिलाफ उठ गईं।
निर्णयों में से एक चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की कई परियोजनाओं को उलटना था, जिनकी खान के आदेश पर समीक्षा की गई। इससे कठिन वित्तीय समयों में इस्लामाबाद का उद्धारकर्ता रहा चीन नाराज हो गया।
सेना के खान के खिलाफ होने का दूसरा कारण अरब देशों, विशेष रूप से सऊदी अरब के प्रति उनकी अनदेखी थी, जो मुस्लिम दुनिया का प्रतिनिधित्व करने के लिए तुर्की और मलेशिया के साथ संयुक्त गठबंधन बनाने की खान की घोषणा से नाराज था। सऊदी अरब ने इस मामले पर कड़ा संज्ञान लिया और खान को ऐसी कोई भी कोशिश करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी।
तीसरा कारण उस समय खान का रवैया था जब विपक्ष ने एक गठबंधन बनाया और संसद में अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से उन्हें बाहर करने का फैसला किया।
घटनाओं की अंदरूनी जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, इमरान खान ने बाजवा को अपने बचाव में आने और गठबंधन के गठन को रोकने के लिए जोर दिया जबकि बाजवा ने उन्हें विपक्षी दलों के साथ बातचीत करने के लिए कहा। खान ने सीधे बातचीत के माध्यम से विपक्ष के साथ कोई परामर्श करने से इनकार कर दिया और सैन्य प्रतिष्ठान पर उन्हें रोकने का दबाव डाला।
सूत्र ने कहा, ऐसा लगता है कि वीओएनसी को रोकने की स्थिति में खान बाजवा को असीमित विस्तार की पेशकश कर रहे थे, और ऐसा नहीं करने पर उन्होंने बाजवा को सेना प्रमुख के पद से हटाने की धमकी दी।
उसी समय बाजवा ने न केलव इमरान खान से अपने रास्ते अलग करने का फैसला किया बल्कि गठबंधन के सहयोगियों का साथ छोड़ने के साथ ही उनकी पार्टी को टूटने के लिए छोड़कर इमरान को कमजोर करने का मन बना लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि अविश्वास प्रस्ताव सफल हुआ और इमरान को सत्ता से बाहर जाना पड़ा।
और अब बाजवा के सेवानिवृत्त होने और जनरल असीम मुनीर के सेना प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने के साथ सैन्य प्रतिष्ठान के साथ किसी भी जुड़ाव की खान की उम्मीदें समाप्त हो गई हैं।
सूत्र ने कहा, खान का सीओएएस जनरल असीम मुनीर के साथ रिकॉर्ड खराब, उनकी नियुक्ति को रोकने के लिए उनका अभियान और 9 मई की सबसे हालिया घटना को, जब खान के समर्थकों ने सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला किया, खान के राजनीतिक अस्तित्व के लिए ताबूत में आखिरी कील के रूप में देखा जा सकता है।
आज जब खान को उनके राजनीतिक समर्थन से अलग-थलग किया गया है और अकेला छोड़ दिया गया है, तो हर गुजरते दिन के साथ उनकी तरफ से वार्ता की मांग बढ़ती जा रही है। हालांकि, प्रतिष्ठान के बंद दरवाजों पर खान की मांगों नहीं सुनी जा रही है।
सूत्र ने कहा, खान एक सैन्य परियोजना थे, राजनीतिक मोर्चे के चेहरे के रूप में उनकी सबसे अच्छी पसंद.. और उनकी सबसे बड़ी गलती।
–आईएएनएस
एकेजे