नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)। फिल्म ‘उमराव जान’ के गाने ‘दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए’ का अपना ही क्रेज़ है। नजाकत से भरी रेखा की अदाएं, शहरयार के रूमानी बोल और आशा भोसले की खनकती आवाज़ के आज भी करोड़ों फैंस हैं। इस गाने को इसका म्यूजिक कंप्लीट करता है, जिसके पीछे हैं… खय्याम। इस गीत का एक हिस्सा है, ‘इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, दीवारों-दर को गौर से पहचान लीजिए’… शायद, खय्याम भी दूसरी दुनिया से यही कह रहे हैं। हम बात कर रहे हैं मोहम्मद ज़हूर हाशमी की, जिनका तखल्लुस ‘खय्याम’ आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में बसता है।
खय्याम ने जब आसपास, समाज और खुद को समझना शुरू किया तो उनके लिए संगीत (मौसिकी) ही सब कुछ हो गया। 18 फरवरी 1927 को पंजाब में जन्में खय्याम हमेशा से फिल्मों और संगीत के शौकीन रहे। खय्याम की शुरुआती जिंदगी के बारे में ढेर सारी कहानियां हैं। कुछ में उन्हें फौजी बताया जाता है तो कुछ में संगीत का सच्चा साधक। इन कहानियों से इतर खय्याम सिर्फ संगीत के थे। एक ऐसे म्यूजिशियन, जो मैजिशियन से किसी मायने में कम नहीं थे। खय्याम ने जब संगीत से प्रेम किया तो खुद उन्हें नहीं पता था कि एक दिन उनका एतबार उन्हें ‘सपनों की दुनिया’ का ‘ध्रुवतारा’ बनाकर दम लेगा।
कई इंटरव्यू में खय्याम ने बताया था कि बचपन में फिल्मों के शौक के चक्कर में घरवालों की डांट भी खानी पड़ती थी। खय्याम ने जब बंबई (अब मुंबई) का रुख किया तो उन्हें खुद से ज्यादा संगीत पर भरोसा था। खय्याम ने बॉलीवुड से पहले मशहूर पंजाबी संगीतकार बाबा चिश्ती से संगीत को समझा और सुरों को धार देने में जुट गए। उन्हें यकीन था कि कुछ होगा, कुछ अच्छा होगा और उनके यकीन ने 1948 में ‘हीर रांझा’ फिल्म के रूप में हकीकत बनकर रुपहले पर्दे पर अवतार लेने में सफलता पाई। इस फिल्म के म्यूजिक से खय्याम हर किसी के दिल में बस गए। हर कोई उनका दीवाना बनता जा रहा था।
लेकिन, खय्याम के लिए फिल्म ‘उमराव जान’ किसी चैलेंज से कम नहीं था। ‘पाकीज़ा’ फिल्म का जादू सिनेप्रेमियों के सिर चढ़कर बोल रहा था। इसके गाने, एक्टिंग से लेकर स्टोरीलाइन तक की फैन फॉलोइंग हर गुज़रते दिन के साथ बढ़ती जा रही थी। कहीं ना कहीं ‘उमराव जान’ भी उसी पृष्ठभूमि की फिल्म थी। खय्याम ने ‘उमराव जान’ के म्यूजिक को तैयार करने से पहले इतिहास पढ़ना शुरू कर दिया। खुद को पूरी तरह झोंक दिया। उनकी मेहनत रंग लाई और 1981 में रिलीज हुई मुज़फ़्फ़र अली की ‘उमराव जान’ ने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। इस फिल्म के लिए खय्याम को फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला।
लोग खय्याम के फैन होते जा रहे थे। लेकिन, खय्याम ने फिल्म की सफलता का श्रेय सभी को दिया। यहां तक कहा, “रेखा ने मेरे संगीत में जान डाल दी। उनके अभिनय को देखकर लगता है कि रेखा पिछले जन्म में उमराव जान ही थी।”
खय्याम को हिंदी सिनेमा का ‘कोहिनूर’ कहा जाए तो कम नहीं होगा। खय्याम के संगीत में ऐसा जादू है कि जो भी इसे सुनता है, बस, उसी का होकर रह जाता है। ‘शगुन’, ‘फिर सुबह होगी’, ‘नूरी’, ‘कभी कभी’, ‘रजिया सुल्तान’, ‘उमराव जान’, ‘बाजार’, ‘आखिरी ख़त’, ‘त्रिशूल’ जैसी फिल्मों में संगीत देकर खय्याम अमर हो गए। उन्हें 2010 में फिल्म फेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। वहीं, साल 2011 में खय्याम को पद्म भूषण से भी नवाजा गया।
संगीत की दुनिया के दमदार किरदार खय्याम एक दिलदार इंसान भी थे। अपने 90वें जन्मदिन पर साल 2016 में खय्याम ने 10 करोड़ रुपए दान कर दिए थे। कहा जाता है कि यह रकम उनकी संपत्ति का 90 फीसदी हिस्सा था। ज़िंदगी के आखिरी दौर में खय्याम को कई शारीरिक परेशानियों ने घेर लिया था। उन्हें मुंबई की एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 19 अगस्त 2019 को खय्याम ने आखिरी सांस ली।
–आईएएनएस
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