ओटावा, 27 मार्च (आईएएनएस)। कनाडा की लिबरल पार्टी के तीन बार सांसद रह चुके चंद्र आर्य को आगामी फेडरल चुनावों में पार्टी ने टिकट नहीं दिया है। यह कदम भारत से जुड़े कथित विदेशी हस्तक्षेप के आरोपों के चलते उठाया गया है। हालांकि, भारतीय मूल के हिंदू नेता का कहना है कि उन्हें टिकट इसलिए नहीं मिला है, क्योंकि उन्होंने कनाडा में बढ़ते खालिस्तानी चरमपंथ के प्रभाव के खिलाफ मजबूती से आवाज उठाई थी।
चंद्र आर्य लंबे समय से पूर्व कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की आलोचना करते रहे हैं। उनका मानना है कि ट्रूडो सरकार ने कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथियों को शरण दी, जिससे भारत-कनाडा संबंधों में तनाव बढ़ा।
टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने कहा, “सांसद के रूप में, मैंने कनाडा और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई राजनयिकों और सरकार के प्रमुखों से मुलाकात की। कभी भी मुझसे इसकी अनुमति लेने के लिए नहीं कहा गया, न ही इसकी जरूरत पड़ी। जस्टिन ट्रूडो या किसी मंत्री ने मेरी बैठकों या बयानों पर कोई आपत्ति नहीं जताई। लिबरल पार्टी का एकमात्र विवादास्पद मुद्दा मेरे हिंदू-कनाडाई समुदाय के प्रति समर्थन और खालिस्तानी चरमपंथ के खिलाफ मेरी स्पष्ट राय है।”
कनाडा के प्रतिष्ठित अखबार ‘द ग्लोब एंड मेल’ के अनुसार, चंद्र आर्य ने पिछले साल अगस्त में नई दिल्ली में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। आरोप है कि उन्होंने इस यात्रा की जानकारी कनाडा सरकार को नहीं दी, जबकि उस समय भारत-कनाडा संबंधों में कड़वाहट चरम पर थी।
लिबरल पार्टी ने आर्य के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया है। हालांकि, एक पार्टी सूत्र ने बताया कि कनाडा की खुफिया एजेंसी ने सरकार को आर्य के भारत सरकार और ओटावा स्थित भारतीय उच्चायोग से करीबी संबंधों की जानकारी दी थी। यही कारण है कि लिबरल पार्टी ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया।
पिछले साल दिसंबर में चंद्र आर्य ने हाउस ऑफ कॉमन्स में खुलासा किया था कि जब उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों को ‘नरसंहार’ कहने के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया, तो उनके ही दल के सांसद सुख धालीवाल ने उन्हें धमकी दी। एक अन्य सांसद ने उनके फैसले पर सवाल उठाए।
आर्य ने कहा था, “एक सांसद के रूप में मुझे अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति होनी चाहिए। मैं अपने ही सहयोगियों से धमकी नहीं झेल सकता।”
–आईएएनएस
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