नई दिल्ली, 27 फरवरी (आईएएनएस) मंगलवार को जारी उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के एसबीआई रिसर्च विश्लेषण के अनुसार, भारत में गरीबी में तेज गिरावट के साथ-साथ देश में ग्रामीण-शहरी आय विभाजन में भी उल्लेखनीय कमी आई है।
2018-19 के बाद से ग्रामीण गरीबी में 440 आधार अंकों की गिरावट आई है और महामारी के बाद शहरी गरीबी में 170 आधार अंकों की गिरावट आई है, जो दर्शाता है कि निचले स्तर के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल का महत्वपूर्ण लाभकारी प्रभाव पड़ रहा है।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण गरीबी अब 7.2 प्रतिशत (2011-12 में 25.7 प्रतिशत) है जबकि शहरी गरीबी 4.6 प्रतिशत (2011-12 में 13.7 प्रतिशत) है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत अधिक आकांक्षी होता जा रहा है, जैसा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विवेकाधीन उपभोग (जैसे पेय पदार्थ, नशीले पदार्थ, मनोरंजन, टिकाऊ सामान आदि पर खर्च) की बढ़ती हिस्सेदारी से संकेत मिलता है। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में आकांक्षा की गति तेज है।
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एमपीसीई) के बीच का अंतर अब 71.2 प्रतिशत है, जो 2009-10 में 88.2 प्रतिशत था। ग्रामीण एमपीसीई का लगभग 30 प्रतिशत मुख्य रूप से डीबीटी हस्तांतरण, ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश, किसानों की आय में वृद्धि, और साथ में ग्रामीण आजीविका में उल्लेखनीय सुधार के संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण होता है।
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, उन्नत भौतिक बुनियादी ढांचा दो-तरफा ग्रामीण-शहरी गतिशीलता को सक्षम कर रहा है, जो ग्रामीण और शहरी परिदृश्य के बीच बढ़ते क्षैतिज आय अंतर और ग्रामीण आय वर्गों के भीतर ऊर्ध्वाधर आय अंतर का मुख्य कारण है।
जिन राज्यों को कभी पिछड़ा माना जाता था, वे ग्रामीण और शहरी अंतर में सबसे अधिक सुधार दिखा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इन कारकों का प्रभाव तेजी से दिख रहा है।
ग्रामीण पिरामिड के निचले आधे हिस्से में अब उपभोग पैटर्न ज्यादातर शहरी समकक्षों में परिवर्तित हो रहा है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीपीआई गणना में संशोधित एमपीसीई भार वित्त वर्ष 2024 के लिए भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि को शीर्ष 7.5 प्रतिशत तक पहुंचाने में मदद कर सकता है।
ग्रामीण और शहरी उपभोग सभी वर्गों में औसतन लगभग समान विकास दर (ग्रामीण के लिए 2.66 प्रतिशत, शहरी के लिए 2.59 प्रतिशत) से बढ़ रहा है। गिनी गुणांक के सांख्यिकीय समकक्ष का उपयोग करते हुए फ्रैक्टाइल्स में ग्रामीण और शहरी के बीच क्षैतिज उपभोग असमानता 0.560 से घटकर 0.475 हो गई है।
सबसे निचले खंड में शहरी खपत ग्रामीण समकक्ष की तुलना में केवल 46 प्रतिशत अधिक भिन्न है। विभिन्न वर्गों में शहरी खपत ग्रामीण समकक्ष की तुलना में केवल 68 प्रतिशत अधिक भिन्न है, जो अखिल भारतीय औसत से बहुत कम है। यह इंगित करता है कि ग्रामीण पिरामिड के निचले आधे हिस्से में अब एमपीसीई पैटर्न ज्यादातर शहरी समकक्षों में परिवर्तित हो रहे हैं।
–आईएएनएस
एसएचके/सीबीटी