बीजिंग, 25 जुलाई (आईएएनएस)। अभी कुछ समय पहले, चीन की राजधानी पेइचिंग में आयोजित 2023 तिब्बत विकास मंच पर तिब्बती कला का प्रदर्शन हुआ, जिसमें पीले तिब्बती कपड़े पहने बांसुरी बजाते एक बूढ़े तिब्बती ने लोगों का ध्यान खींचा। वह जो बांसुरी बजा रहे थे वह कोई साधारण बांसुरी नहीं थी, बल्कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत के उत्तराधिकारी त्सी तान द्वारा बनाई गई एक ईगल (गरुड़) हड्डी की बांसुरी है।
दरअसल, तिब्बत में ईगल हड्डी से बनी बांसुरी का इतिहास 1600 वर्ष से भी अधिक पुराना है। तिब्बती छह-तार वाले वायलिन और बैल सींग वाले वायलिन के अलावा, यह एक वास्तविक तिब्बती मूल संगीत वाद्ययंत्र है।
वर्ष 1952 में त्सी तान का जन्म तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में हुआ था। उन्होंने 12 साल की उम्र में वाद्य संगीत का अध्ययन करने के लिए पेइचिंग में केंद्रीय मिनजू विश्वविद्यालय के कला विभाग में दाखिला लिया। तिब्बत लौटने के बाद, उन्होंने तिब्बती रिपर्टरी थिएटर मंडली और तिब्बती गीत-नृत्य मंडली के साथ क्रमिक रूप से काम किया। इस दौरान उन्होंने एक बार तिब्बत गीत-नृत्य मंडली के राष्ट्रीय बैंड के नेता के रूप में कार्य किया। वर्तमान में, वह राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे स्तर के अभिनेता हैं। इन वर्षों में कई बार, उन्होंने विभिन्न कार्यक्रमों में बांसुरी एकल वादक के रूप में प्रदर्शन किया है।
साहित्यिक अभिलेखों से संकेत मिलता है कि ईगल हड्डी से बनी बांसुरी का उल्लेख 1600 साल से भी अधिक पहले का मिलता है। गरुड़ के पंखों की एकसमान हड्डी वाले भाग का उपयोग बांसुरी बनाने में किया जाता है। त्सी तान के अनुसार, गरुड़ तिब्बती लोगों की बहादुरी और कड़ी मेहनत का प्रतिनिधित्व करता है।
तिब्बतियों के लिए, गरुड़ एक देवता समान है, और बहुत पवित्र पक्षी है। ऐसा कहा जाता है कि वह सूर्य की ओर तब तक उड़ता रहा जब तक कि वह अपने जीवन के अंत में राख में परिवर्तित नहीं हो गया। गरुड़ की हड्डियां ज़मीन पर बहुत कम पाई जाती हैं, इसलिए उनकी हड्डियों से बनी बांसुरी भी दुर्लभ हैं।
त्सी तान को वर्ष 1986 में गरुड़ के पंख की एक दुर्लभ हड्डी मिली थी, जिसका उपयोग उन्होंने बांसुरी बनाने में किया था। सेंट्रल नेशनल ऑर्केस्ट्रा के बांसुरी वादक, निंग पाओशांग ने वर्ष 1997 के अंत में पहली ईगल हड्डी से बनी बांसुरी प्राप्त करने में मदद की। त्सी तान के साथ, इस बांसुरी ने विभिन्न जगहों और दुनिया के पांच-छह देशों की यात्रा की, और छिंगहाई-तिब्बत पठार की ध्वनि को विश्व भर में प्रसारित किया।
त्सी तान का मानना है कि प्राचीन किंवदंतियों में ईगल हड्डी से बनी बांसुरी बादलों और धुंध को भेदती है, जिससे लंबे समय से खोए हुए पूर्वजों का गायन सामने आता है और साथ ही इतिहास का खून भी बहाया जाता है।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
–आईएएनएस