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Home राष्ट्रीय

गांगेय डाल्फिन के संरक्षण से बढ़ेगा गंगा का आकर्षण और जैव विविधता

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November 5, 2023
in राष्ट्रीय
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गांगेय डाल्फिन के संरक्षण से बढ़ेगा गंगा का आकर्षण और जैव विविधता
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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

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गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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लखनऊ, 5 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में गांगेय डाल्फिन के संरक्षण की कवायद अब तेज हो गई है। इसी कारण चंद रोज पहले सरकार ने इसे राज्य का जलीय जीव घोषित कर दिया। नदी की जैव विविधता को बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका होती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

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विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

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विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

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बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

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विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

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विशेषज्ञों का मानना है कि इसे जलीय जीव की घोषणा से लुप्तप्राय हो रहे इस स्तनधारी जीव (मैमल्स) के सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर फोकस बढ़ेगा। इससे इनकी संख्या भी बढ़ेगी और ये गंगा का आकर्षण भी बढ़ाएगी।

गांगेय डॉल्फिन की संख्या भी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है। एक अनुमान के मुताबिक अगर इनकी कुल संख्या 2000 के आसपास है तो उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 1600 से 1700 तक हो सकती है। ऐसे में इनके संरक्षण और संवर्धन की सर्वाधिक जिम्मेदारी भी उत्तर प्रदेश की ही बनती है।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक अंजनी आचार्य कहते हैं कि ये फ्रेश वाटर डॉल्फिन है। अभी भारत सरकार के साथ मिलकर गणना हुई है। इनकी संख्या काफी बढ़ी है। तकरीबन दो हजार से ज्यादा हैं। इन्हें राज्य का जीव घोषित होने के बाद इनके संरक्षण पर हमारा फोकस बढ़ जाता है। नदी के किनारे रहने वाले इसके संरक्षण और और सुरक्षा के प्रति जागरूक करेंगे। इसकी आधी से ज्यादा आबादी सिर्फ यूपी में ही पाई जाती है। इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया गेरुआ, चंबल, घाघरा में पाई जाती है। गंगा में इनकी संख्या सर्वाधिक है। आने वाले कुछ वर्षों में ये गंगा नदी के आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया किडॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते है। यह बिलुप्तप्राय जीव है। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती है। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है। इसलिए भी इनका संरक्षण जरूरी है। प्रदूषण बढ़ने से इन्हे परेशानी होती है। शिप और क्रूज से परेशानी होती है। डाल्‍फ‍िन की सक्रियता को नदी के जल के अपेक्षाकृत साफ होने का सूचक माना जाता है। प्रदूषित जल में यह जलीय जीव अपना निवास नहीं बनाता है।

उन्होंने बताया कि डॉल्फिन एक तरह से बायो इंडिकेटर का भी काम करती हैं। ऐसे में इनकी उपलब्धता यह बताती है कि पानी की गुणवत्ता ठीक ठाक है। ये देख नहीं पाती। शिकार के लिए ये आवाज निकालती हैं। उनकी आवाज शिकार से टकराकर जब उन तक पहुंचता है तो उन्हें शिकार का लोकेशन पता चल जाता है। इसे जलीय जीव घोषित करने पर इसका संरक्षण होगा। मीठे जल में रहना अन्य जीवों के स्वस्थ्य रहने का संकेत माना जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉल्फिन अपेक्षाकृत बुद्धिमान होती है। इंसान से इसकी दोस्ती जगजाहिर है। दरअसल यह सांस लेने के लिए हर कुछ मिनट के अंतराल पर नदी की सतह पर आती है। इसीलिए यह अपेक्षाकृत कम गहरी नदियों में ही मिलती है। यमुना जो गंगा की सहायक नदी है उसकी गहराई के ही कारण उसमें डॉल्फिन का मिलना अपवाद है। राज्य जीव का दर्जा पाने के बाद संरक्षण और संवर्धन से जब इनकी संख्या बढ़ेगी तब बार बार सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आने के कारण ये आकर्षण का केंद्र बनेंगी।

–आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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