अहमदाबाद, 23 अगस्त (आईएएनएस)। गुजरात हाईकोर्ट ने अदालती कार्यवाही में अंग्रेजी के साथ गुजराती को शामिल करने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया है।
मंगलवार को आए कोर्ट के फैसले से इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में विचार-विमर्श का रास्ता साफ हो गया है।
जनहित याचिका में हाईकोर्ट को 2012 के गवर्नर प्राधिकरण पर कार्रवाई करने के लिए बाध्य करने की मांग की गई थी, जिसने सुनवाई के दौरान स्थानीय भाषा के उपयोग की अनुमित दी।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध माई की पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया, इसे ‘पीआईएल के नाम पर पूरी तरह से गलत याचिका’ करार दिया।
पीठ ने आगे कहा कि जनहित याचिका भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) द्वारा दी गई प्रशासनिक सलाह को चुनौती देने का एक प्रयास था।
जनहित याचिका में अक्टूबर 2012 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का संदर्भ भी चिंता का विषय था।
उस बैठक के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे कई राज्यों के उच्च न्यायालयों में गुजराती सहित क्षेत्रीय भाषाओं को पेश करने के प्रस्तावों को खारिज कर दिया था।
पीठ ने स्पष्ट किया कि तत्कालीन सीजेआई ने 16 अक्टूबर, 2012 को एक आधिकारिक पत्र के माध्यम से केंद्र सरकार को शीर्ष अदालत के सामूहिक निर्णय के बारे में सूचित किया था।
इस पत्राचार में सावधानीपूर्वक विचार के बाद प्रस्ताव को अपनाने के खिलाफ अदालत के फैसले का विवरण दिया गया। सरकार ने बाद में इस निर्णय का पालन किया।
इस बात पर जोर देते हुए कि मामला उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, पीठ ने कहा कि इसका एकमात्र उपाय सुप्रीम कोर्ट के पास है।
विशेष रूप से, पिछले साल गुजरात हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष के अनुरोध के कारण कानूनी समुदाय के भीतर उथल-पुथल देखी गई थी, जिसमें अदालती कार्यवाही में स्थानीय भाषा को शामिल करने का आग्रह किया गया था। इस अनुरोध के कारण अंततः उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा।
–आईएएनएस
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